Book Title: Jivvicharadiprakaransangrah
Author(s): Jindattsuri Gyanbhandar Surat
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 10
________________ म-जीव किसको कहते हैं? उ.--जो प्राणोंको धारण करे. प्राण दो तरहके हैं, भाव-प्राण और द्रव्यमाण कहते हैं. चेतनाको भाव-प्राण कहेते हैं. पाँच इन्द्रियाँ-आँख, जीभ, नाक, कान और त्वचा त्रिविध बल-मनोबल, | वचनबल और कायबल; श्वासोच्छास और आयु ये दस द्रव्य-प्राण है. प्र०-मुक्त किसको कहते हैं ? उ-जिसका जन्म और मरण न होता हो-जो जीव, जन्म-मरणसे छूट गया हो. | | प्र--संसारी किसको कहते हैं ? उ०-जो जीव जन्म-मरणके चक्कर में फँसा हो. प्र०-त्रस किसको कहते हैं? उ०--जो जीव, सर्दी-गरमीसे अपना बचाव करनेके लिये चल-फिर सके, वह त्रस. 8 प्र स्थावर किसको कहते हैं? उ०-जो जीव सर्दी-गरमीसे अपना बचाव करनेके लिये चल-फिर न सके, वह स्थावर । है| प्र०-पृथ्वीकाय आदिका क्या अर्थ है? उ०—कायका अर्थ है शरीर; जिस जीवका शरीर पृथ्वीका हो, वह पृथ्वीकाय; जिसका शरीर जलका हो, वह जलकाय; जिसका अग्निका हो, वह अग्निकाय; जिसका वायुका हो, वह तिवायुकाय; जिसका वनस्पतिका हो, वह वनस्पतिकाय. फलिहमणि-रयण-विद्दम-, हिंगुल-हरियाल-मणसिल-रसिंदा । कणगाइ-धाउ-सेढी, वनिअ-अरणेहय-पलेवा ॥३॥

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