Book Title: Jivvicharadiprakaransangrah Author(s): Jindattsuri Gyanbhandar Surat Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar View full book textPage 9
________________ प्र० - यदि हम उनको सतावेंगे तो क्या होगा ? होनेके सबब वे बदला न ले सकेंगे तो दूसरे जन्ममें लेंगे. उ०- वे भी हमें सतावेंगे - बदला लेंगे, इस वक्त कमजोर प्र० - भगवान्को भुवन- प्रदीप क्यों कहा ? उ०- - जैसे दीपक घट-पट आदि पदार्थोंको प्रकाशित करता है। वैसे भगवान् सारे संसार के पदार्थों को प्रकाशित करते हैं-खुद जानते हैं तथा समवसरण में औरोंको उपदेश देते हैंइसलिये उनको भुवन- प्रदीप कहते हैं. प्र० -- यहां अज्ञ किनको समझना चाहिये ? प्र० - पुराने आचार्य कौन है। :-02 उ०- जो लोग, जीवके स्वरूपको नहीं जानते उनको. गौतम स्वामी, सुधर्मा स्वामी आदि. जीवा मुत्ता संसारिणो य, तस थावरा य संसारी । पुढवी जल-जलण वाऊ, वणस्सई थावरा नेया ॥२॥ ( जीवा ) जीव, दो प्रकार के हैं ( मुत्ता ) १ मुक्त (य) और ( संसारिणो ) २ संसारी हैं. ( तस ) त्रस जीव, (य) और ( थावरा) स्थाचर जीव, ( संसारी) संसारी दोप्रकारके हैं. नसके भेद आगे कहेंगे (पुढवी जल जलण वाऊ त्रणस्सई ) पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पतिको (धावरा) स्थावर (नेया) जानना ॥ २ ॥ भावार्थ - जीवके दो भेद हैं:-मुक्त और संसारी. संसारी जीवके दो भेद हैं; - त्रस और स्थावर. स्थावर जीवके पाँच भेद हैं; - पृथ्वीकाय, जलकाय - अपकाय: अग्निकाय - तेजःकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय.Page Navigation
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