Book Title: Jinabhashita 2006 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 8
________________ कुण्डलपुर में बड़े बाबा के निर्माणाधीन मंदिर की यथार्थ स्थिति वीरेश सेठ श्री बड़े बाबा मंदिर निर्माण समिति, कुण्डलपुर (जिला दमोह, म.प्र.) के प्रभारी श्री वीरेश सेठ द्वारा पत्रकार सम्मेलन में व्यक्त विचार। विगत कुछ दिवसों से पूज्य बड़े बाबा, प्रथम जैन तीर्थंकर | स्मारक थे, तो उनकी चारों दिशायें, उनके नाप-तौल, उनके आदिनाथ भगवान् की प्रतिमा के स्थानान्तरण के सम्बन्ध में | निषिद्ध क्षेत्र के विवरण के साथ इस विभाग की नीले रंग की पुरातत्त्व विभाग के कुछ अधिकारियों के लगातार असत्य | पट्टिका व विभाग के चौकीदार सुरक्षा हेतु होने चाहिए थे बयान तथा दमोह जिला प्रशासन के मुखिया के द्वारा पुरातत्त्व | | किन्तु आज की तारीख तक इस विभाग ने वहाँ पर न कोई विभाग की वास्तविकता की जानकारी लिए बिना ही संपूर्ण अपने संरक्षण की सूचना लगायी है, न ही कोई कर्मचारी, भारतवर्ष में फैले 2 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं एवं | चौकीदार की ड्यूटी लगायी है, न एक पैसे की राशि, इन अहिंसात्मक विचारधारा के समर्थकों पर तरह-तरह के मंदिरों की सुरक्षा, संरक्षण, देख-भाल, निर्माण अथवा अर्नगल, मिथ्या आरोप लगाये जा रहे हैं। जीर्णोद्धार के नाम पर खर्च की, क्योंकि यह विभाग इस बात मैं वीरेश सेठ, प्रभारी-श्री बड़े बाबा मंदिर निर्माण समिति | को अच्छी तरह जानता था कि कुण्डलपुर में जो आज मंदिर बड़े ही सम्मान के साथ यहाँ उपस्थित सभी सम्माननीय | बनें हैं वे उनके संरक्षित स्मारक नहीं हैं। इस विभाग के द्वारा पत्रकार बंधुओं, प्रिंट मीडिया एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया के | पिछले 100 सालों में देश की स्वतंत्रता से लेकर आज तक समक्ष सन् 1871-72 से लेकर आज दिनांक 28 जनवरी| जो भी पैसा खर्च किया गया, किसी भी कर्मचारी की 2006 तक 135 सालों की वास्तविकता, इस पुरातत्त्व विभाग | कुण्डलपुर में नियुक्ति की गई या किसी स्मारक को संरक्षित के सम्मानीय अधिकारियों द्वारा समय-समय पर जैन तीर्थ | किया गया वह सिर्फ कुण्डलपुर पहाड़ी की तलहटी में बने क्षेत्र कुण्डलपुर के सम्बन्ध में पूज्य श्री 1008 बड़े बाबा की | हुए अंबिकादेवी-मठ में ही किया गया और वह इसलिये प्रतिमा जी अथवा मंदिर के सम्बन्ध में, यहाँ तक कि उनके | भी सत्य है कि कुण्डलपुर क्षेत्र में दिगम्बर जैन समाज के द्वारा, वास्तव में संरक्षित अंबिकादेवी-मठ के सम्बन्ध में, बने हुए सारे के सारे जैन मंदिर 15 वीं से 19 वीं सदी के किये गये सर्वे, पत्राचार, नोटीफिकेशन, तत्कालीन जिला मध्य के हैं, वे मंदिर उस दरम्यान जो निर्माण में सामग्री प्रशासन प्रमुख, आदि के द्वारा कुण्डलपुर जी के सम्बन्ध में, उपयोग होती थी, उसके बने हैं, मंदिरों का आर्किटेक्ट उस वहाँ की एक मात्र समिति जो समय-समय पर जैनधर्म के समय का प्रचलित आर्किटेक्ट है। इन मंदिरों के निर्माता जैन अनुयायियों के द्वारा मनोनीत अथवा लोकतांत्रिक पद्धति से समाज के दानदाता लोग रहे हैं। किस समय किस मंदिर का निर्वाचित होती आ रही है के साथ किया गया पत्राचार | निर्माण हुआ, किन व्यक्तियों ने उन्हें बनवाया, मंदिर में किन उसकी सारी जानकारी जो हमारे पास प्रमाण के साथ उपलब्ध | तीर्थंकर भगवान की मूर्ति है, कितनी मूर्तियाँ हैं, उन मूर्तियों है, आपके समक्ष बिन्दु बार प्रस्तुत है - की पाद-पीठिका पर, प्रशस्ति में उन दानदाताओं, प्रतिष्ठाचार्यों पुरातत्त्व विभाग अब यह बता रहा है कि 16/07/1913 | के नाम खुदे हुये हैं, जिसका कि पूरा का पूरा प्रामाणिक को चीफ कमिश्नर सेन्ट्रल प्रावीजन्स नागपुर द्वारा प्रकाशित रिकार्ड हमारे पास उपलब्ध है। इसकी भी प्रमाणित प्रतिलिपि अधिसूचना के तहत कुण्डलपुर के 1 से 58 जैन मंदिर | इस विज्ञप्ति के साथ संलग्न है। (क्रमांक 2)। केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग के संरक्षण में ले लिये गये थे, पुरातत्त्व विभाग जिन मंदिरों को 6वीं-7वीं शताब्दी का जिसके संदर्भ में बड़ा ही स्पष्ट है कि उस नोटीफिकेशन में | कहता है, वह सिर्फ पहाड़ों की तलहटी में बना हुआ अंबिका सिर्फ यह लिखा है Jain Temples on The Hill, इससे | | देवी का मठ है। उसका आर्किटेक्ट, उसमें उपयोग की गयी न यह पता चलता है वे कौन से मंदिर हैं, उनका क्या क्रमांक सामग्री 6वीं-7वीं शताब्दी की है। और इस बात का प्रमाण है और उनकी कितनी संख्या है? यदि वे पुरातत्त्व के संरक्षित | मौके पर उपलब्ध है। इस विभाग के द्वारा स्वतंत्रता के पूर्व 6/मार्च 2006 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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