Book Title: Jinabhashita 2006 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 17
________________ श्रृंगार दुल्हन का : राह संन्यास की आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने 58 ब्रह्मचारिणी बहिनों को आर्यिका दीक्षा प्रदान की जयकुमार जैन 'जलज' सुप्रसिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर में 13 फरवरी 2006 को लगभग । मोक्षमार्ग के कठिन पथ पर जो बढ़ रही थी। सच के पीछे 50 हजार श्रद्धालुओं की उपस्थिति में देश के विभिन्न प्रांतों | की भावना और भावनाओं के पीछे का सच जिसे समझ में से आईं 58 ब्रह्मचारिणी बहिनों ने उत्सवी माहौल में संत | आ जाता है वही दीक्षा को उपलब्ध होता है। यह आत्मशिरोमणि परम पूज्य आचार्य विद्यासागर जी महाराज से विजेता योद्धाओं का पथ है। इस पर कोई वीर महावीर ही आर्यिका दीक्षा प्राप्त की। यह पहला मौका है जब एक साथ | चल सकता है क्योंकि शत्रुओं को जीतना आसान है पर इतनी अधिक संख्या में आचार्यश्री द्वारा आर्यिकादीक्षा प्रदान अपने आप पर नियंत्रण सबसे कठिन काम है। धन्य थीं वे की गई। हजारों-हजार आँखें, जिन्होंने इस महान् दृश्य को देखा। इस अवसर पर आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने | पटना (बिहार) से पहली बार कुण्डलपुर पधारे 74 वर्षीय अपने आशीर्वचन में कहा कि बड़े बाबा के उच्च सिंहासन भँवरलाल जैन अपने जीवन में पहली बार कोई दीक्षा समारोह पर विराजित होने के उपरान्त यह चमत्कार हआ है। | देख रहे थे, वे बिल्कुल चौथेकाल जैसे दृश्य का अनुभव ब्रह्मचारिणी बहिनों की भावना थी. पर्व में अनेक बार उन्होंने | कर रहे थे। सप्तम प्रतिमाधारी वयोवृद्ध डालचंद बडकल दीक्षा हेतु भाव प्रकट किये थे. अब यह कार्य जल्दी से | का कहना था- काश हमें गुरुवर पहले मिल गये होते. तो जल्दी हो जावे। होता कैसे बड़े बाबा भूगर्भ में थे। आज हम गृहस्थी न बसाते। जब चिड़िया चुग गई खेत अब आपने अपने जीवनकाल में यह मोक्षमार्ग-महोत्सव देखा, | पछताये होत का। ब्रह्मचारी त्रिलोकजी ने कहा- दीक्षा वह इसे आत्म-महोत्सव कहें या संयम-महोत्सव कहें, इससे अवसर है, जब साधक अकरणीय कार्यों से मुक्त होकर बढकर आर्यिकादीक्षा-महोत्सव क्या होगा! इन सभी ने चारित्र रत्नत्रयस्वरूप करणीय कार्यों को करने के लिये कृतसंकल्प को, संयम को स्वीकार किया है, संयम मार्ग को चुना है। होता है। संजय चौधरी गुना का कहना था उनकी छोटी असंयम संसार का कारण है संयम मुक्ति का कारण है।। बहिन भारती दीदी सच्चे मार्ग पर कदम बढ़ा रही हैं, जहाँ संयमी गिने चुने होते हैं, असंयमियों की संख्या निर्धारित दीक्षा पाकर उनका जीवन सुखी होगा। शादी करके भी ये नहीं, अनंत कोटि में है। संयम एक नौका का कार्य करता | सुख,खुशियाँ उन्हें हम नहीं दे पाते। दीक्षा ले रही डॉ. श्रद्धा है। आप लोग इस दृश्य को देखकर जीवन सार्थक करने हेतु दीदी के भाई सनत कुमार ने बताया कि हम लोग चाहते थे पुरुषार्थ करें। जिन्होंने महाव्रत को धारण किया है. कर्मक्षय | कि दीदी इतनी जल्दी दीक्षा न लें, पर दीदी तो अडिग रहीं. हेतु वे भूले नहीं, अपने मार्ग पर अविरल पल-पल पग-पग उनका कहना था जो कदम आगे बढ गये, पीछे नहीं हट बढ़ते चलें मोक्षमहल की ओर। सकते। व्रती-नगरी पिण्डरई के विजयकमार अपनी बिटिया दीक्षास्थल का नजारा तो अभूतपूर्व था। सुसज्जित मंच | अंजू को गुरुचरणों में सौंपते हुये प्रसन्न दिखे। आचार्यश्री ने पर आचार्यश्री के साथ 48 मुनिगण, एक शतक से अधिक | सभी 58 दीक्षार्थी बहिनों को आर्यिका दीक्षा के संस्कार के आर्यिका मातायें, नव दीक्षार्थी 58 ब्रह्मचारिणी बहिनें, सैकड़ों साथ पिच्छी कमण्डलु एवं नये नाम दिये। प्रतिभामंडल की ब्रह्मचारिणी बहिनें, दूर-दूर तक हजारों दीक्षा के पूर्वदिन कुण्डलपुर में आनंद का सागर वर्धमान हजार श्रद्धालुओं की कतारें, चारों ओर से उठती बड़े बाबा | सागर की लहरों के बीच हिलोरें लेता दृष्टिगत हो रहा था। एवं आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का जय-जयकार। दीक्षा ले रही अर्धशतक से ज्यादा ब्रह्मचारिणी बहिनों के श्रद्धालु उस समय आर्द्र हो गये. जब दीक्षार्थी बहिनों ने शापर्व लोकोपचार-संस्कार की रस्म मेंहदी, दुल्हन स्वरूप वैराग्य के मंच से अपने परिवारजनों, गुरुजनों एवं उपस्थित | शृंगार, ओली भराई एवं बाजे-गाजे के साथ कुण्डलपुर कस्बे जनसमूह से क्षमायाचना कर धर्मपथ पर चलने दीक्षा की | में निकली विनौरी-शोभायात्रा के अलौकिक दृश्य देखकर ओर कदम बढ़ाया। दीक्षार्थी बहिनों के परिजन अपने आँसुओं | उपस्थित विशाल जनसमुदाय भाव विभोर हो गया। मेंहदी को रोक नहीं सके, घर आंगन में पली, बढ़ी लाड़ली बिटिया | रस्म के समय वंदना जैन दमोह अपने भाग्य को सराहते - मार्च 2006 जिनभाषित /15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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