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धारणाएँ एवं भ्रांतियाँ व्याप्त हो गई हैं, उनका निराकरण पद्मप्रभ भगवान की प्राचीन मूर्ति पुराने स्थान से स्थानान्तरित
भावों को तब होगा, जब वे स्वयं कर नवनिर्मित विशाल मंदिर में विराजमान की गई, किन्तु क्षेत्र पर किये जा रहे निर्माण से अवगत होने के लिए पधारेंगे, उसके अतिशय में कोई कमी नहीं आयी। तथ्यों से अवगत होंगे तथा अपनी आशंकाओं का निराकरण वर्तमान बड़े बाबा का मंदिर न तो मूलनायक प्रतिमा का प्रबन्ध समिति से कर लेंगे।
मूल प्राचीन मंदिर है, न ही मूल गर्भगृह। महत्त्व मूर्ति की __वर्तमान गर्भगृह तथा श्रीधर केवली के स्थान को सुरक्षित पवित्रता, प्राचीनता एवं पूजनीयता का ही है, स्थान का नहीं। रखकर इसके पास नये मानस्तंभ का निर्माण किया जायेगा। महावीर जी में महावीरभगवान की अतिशयकारी प्रतिमा को विस्तृत जानकारी के अभाव में बड़े बाबा की मूर्ति के प्राप्ति स्थल (जहाँ ग्वाले की गाय रोज दूध देती थी)पर न स्थानान्तरण के प्रश्न को लेकर मूर्ति को क्षति, मूर्ति के प्रतिष्ठित करके, अन्यत्र विराजित किया जा सकता है, तो अतिशय में कमी तथा इस प्रक्रिया में कुछ पुराने निर्माणों को कुण्डलगिरि में भगवान आदिनाथ जी बड़े बाबा की मूर्ति हटाने के कारण प्राचीनता पर आँच आने जैसी शंकाएँ उठाई को खतरा होने से अन्यत्र विराजमान क्यों नहीं किया जा गईं हैं। वस्तुस्थिति यह है कि किसी दूसरे के कब्जेवाली सकता? कोई भी समाज क्यों अकारण अपनी ही धरोहर को मिल्कीयत पर न कब्जा किया गया है, न ही जबरदस्ती क्षति पहुँचाना चाहेगा? ध्यान देने की मूल बात यह है कि करके तोड़फोड़ का षड्यंत्र रचा गया है। यह तो विशुद्ध रूप पुरातत्त्व के ज्ञाता, जैन धरोहर के संरक्षक, आचार्य व मुनिगण से कुण्डलपुर क्षेत्र की प्रबन्ध समिति तथा सकल जैन समाज तथा तीर्थक्षेत्र की प्रबन्धकारिणी आदि बड़े बाबा की मूर्ति का निजी मामला है। फरवरी 2001 में कुण्डलपुर में आयोजित को क्षति पहुँचाने का खतरा मोल कैसे ले सकते हैं? गत 200 महामस्तकाभिषेक के अवसर पर सकल जैन समाज ने नया वर्षों में जैनसमाज के आधिपत्यवाले इस क्षेत्र में भारत सरकार भव्य मंदिर निर्माण करने तथा सभी मूर्तियों को उस मंदिर में और उसका पुरातत्त्व विभाग कभी नहीं जागा, न ही कभी विराजमान करने का संकल्प लिया था। मूर्ति-स्थानान्तरण से उसने हस्तक्षेप किया और न ही कभी एक पैसा विभाग की बड़े बाबा सहित किसी भी मूर्ति को रंच मात्र भी क्षति नहीं और से कुण्डलपुर क्षेत्र के संरक्षण, संवर्धन, विकास और हुई है। सब कुछ तकनीकी विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में सरलता देखभाल में लगाया गया। आस्थावान दिगम्बर जैन समाज के से हुआ है। बड़े बाबा की मूर्ति के स्थानान्तरण से उनकी लाखों धर्मानुरागियों के तन, मन, धन व सहभागिता से ही महिमा व अतिशय में कोई कमी नहीं आयेगी, चाहे वे यहाँ सब कुछ सही दिशा में किया जा रहा है। समाज के कतिपय रहें या वहाँ, वे बड़े ही रहेंगे। पूरे भारत के विभिन्न भागों में महानुभावों द्वारा उठाई गई सभी आशंकाएँ निर्मूल सिद्ध हो महामंत्र ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं बड़े बाबा अहँ नमः स्वाहा के करोड़ों चुकी हैं।
जाप तथा हजारों-हजारों श्रद्धालुओं की धर्म व पुरातत्त्व की सुरक्षा चन्द व्यक्तियों की नहीं, उपस्थिति में धार्मिक अनुष्ठान के साथ बड़े बाबा की प्रतिमा सम्पूर्ण समाज की चिंता का विषय है। इस कार्य में समस्त नवनिर्मित वेदी पर विराजमान की गयी। इस अवसर पर मुनिसंघ और अधिकांश जैनसमाज की स्वीकृति है। प्रबन्ध आचार्य श्री विद्यासागर जी के सान्निध्य में प्रथम समिति की आड़ में आचार्यों तथा देव, शास्त्र व गुरु सम्मत महामस्तकाभिषेक इस नये स्थान पर किया गया। इस अवसर कार्यों का विरोध करना व बाधाएँ उत्पन्न करना न पर प्रवचन में आचार्यश्री ने कहा कि बड़े बाबा की नए मंदिर अभिनन्दनीय है, न ही स्तुत्य। जो कुछ भी किया जा रहा है में स्थापना होने के लिए देशभर में लाखों लोगों ने जप किये धार्मिक, अध्यात्मिक, व्यवहारिक दृष्टि से पूरे तत्त्वों-वास्तु, थे। पहले बैलगाड़ी से लाए गए बड़े बाबा को अब भूगर्भ से कलात्मकता. प्राचीन संस्कृति, भव्यता, पवित्रता तथा सुरक्षा निकालकर अंतरिक्ष में स्थापित किया गया है। इस अवसर और अखण्डता का ध्यान रखते हए किया जा रहा है। यह पर पूज्य बड़े बाबा की जय के उद्घोष से समूचा धर्म क्षेत्र निर्माण भारतवर्ष का सबसे विशाल ऐतिहासिक दिगम्बर गंजायमान हो गया था। इस अद्भुत ऐतिहासिक क्षण का जैन मंदिर जिसमें पर्वत पर शिखर की ऊँचाई 171 फट. साक्षी बनने पर हर भक्त अपने पुण्योदय को सराह रहा था। मंदिर का सम्पूर्ण निर्माण गुलाबी रंग के वंशी पहाडपुर के सब कुछ शांति से सानन्द सम्पन्न हुआ है। इसका सबसे पत्थर से हो रहा है। देलवाडा माऊन्टआबू के मंदिर के महत्त्वपूर्ण उदाहरण है-अतिशय क्षेत्र पद्मपुरा, जयपुर (राज.), समान नक्काशी नागर शैली का उपयोग किया जा रहा है। जो केवल अपने अतिशय के लिए ही जाना जाता है। वहाँ सोमवार 6 मार्च 2006 को उच्चन्यायालय, जबलपुर में तारीख
मार्च 2006 जिनभाषित / 13
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