Book Title: Jinabhashita 2006 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 36
________________ रजि नं. UP/HIN/34497/24/1/2005-TC गुरु चरणों में समाधिमरण श्रीमती कुसुम देवी जैन, जिन्हें हम सब बड़ी बाई के नाम से जानते हैं, वास्तव में पूरी समाज में अग्रणी और बड़ी ही थीं। 13-14 वर्ष की उम्र में सुसंस्कारित परिवार बीना से सतना के धर्मज्ञ एवं संस्कारित श्री पं. केवलचंद जी के बड़े सुपुत्र कैलाश चन्द्र जी सर्राफकीधर्मपत्नी के रूप में आई थीं। बुजुर्गों के आशीष से उनके गुण जो यहां आकर विशेष रूप से पल्लवित हुए, वे अपने आप में एक उदाहरण हैं। आपकी सहज प्रवृत्ति - सरलता - मिलनसारिता और धर्म के प्रति आस्था, देव-शास्त्र-गुरू के प्रति असीम श्रद्धा, स्वाध्यायशीलता, समाज के उत्थान के विषय में चिंतन के साथ ही पारिवारिक दायित्वों का भी समुचित निर्वहन उनके अद्वितीय गुण थे। परम पूज्य 1008 बड़े बाबा कुंडलपुर सिद्ध क्षेत्र में विराजित परमपूज्य आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के संघ के दर्शनार्थ एवं चौका लेकर भीषण ठण्ड में भी सतना से कुण्डलपुर गई थीं। विगत 7 दिनों से धर्म ध्यान में रत थीं। इस पुण्य कार्य में आपके साथ समाज की अन्य धर्मानुरागी महिलायें भीगई थीं। दिनांक 14 जनवरी की सुबह अनमोलथी आपने नियमित देव दर्शन पूजन, भक्ति की और पूज्य मुनि श्री 108 समयसागर जी का पड़गाहन किया, परिक्रमा की और नवधा भक्ति के अनुसार महाराज श्री की पूजन की एवं अर्घ्य चढ़ाया और वही आपके जीवन का अंतिम अर्घ्य बन गया। आपने अपनी नश्वर देह का त्याग संयमपूर्वक गुरु चरणों के सान्निध्य में पावन सिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर की धरा पर किया , जो जैन धर्मानुसार बड़े पुण्य की बात है। कितने - कितने जन्मों का पुण्य फलीभूत होता है जब इस प्रकार का मरण प्राप्त होता है। हम सभी उनके द्वारा पालन किए गए उत्कृष्ट श्रावक धर्म की अनुमोदना करते हुए कुण्डलपुर के बड़े बाबा से विनय करते हैं कि बड़ी बाई शीघ्र अतिशीघ्र अपनी संसार यात्रा पूरी कर सिद्धालय की ओर प्रयाण करें, हम सभी ऐसी भावनाभाते हैं। मृत्यु महोत्सव श्रावकरत्न श्री रतीलाल चुनीलाल का निर्मल परिणामों के साथ दिनांक 6.1.06शुक्रवार को समाधिमरण हुआ।क्षपक की साधना आठ दिन पूर्व में प्रारम्भ हो गई थी।आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य ब्र.संजीव भैय्या कटंगी के निर्देशन में वीतराग भगवान के समक्ष क्षपक ने सप्तम प्रतिमा के व्रत अंगीकार किये। 10 दिन पूर्व अन्न भोजन का आजीवन त्याग, क्रमश: घटते-घटते दो दिन पूर्व चारों प्रकार के आहार त्याग कर यम सल्लेखना ग्रहण की / अंतिम दिवस उत्साह पूर्वक 500 लोगों ने सम्मिलित कर्मदहन विधान किया। इस अवसर पर क्षपक का उत्साह देखते ही बनता है। विधान के ही बीच गणिनी आर्यिका ज्ञानमती माता जी माता जी का सान्निध्य, सम्बोधन क्षपकके वैराग्य वृद्धि में सहायक बना।क्षपक के उत्साह साहस और सजगता ने समूची बम्बई समाज को एक अनुकरणीय दिव्य उपदेश दिया। अंत में मत्य-महोत्सव शोभा यात्रा का भव्य आयोजन हआ।समाज का श्री रतीलाल जी का यह समाधिमरण महोत्सव नगर के श्रावक-श्राविकाओं को समाधिमरण करने के लिये प्रेरित कर गया।क्षपक ने पूर्व में दसलक्षण व्रत, सोलहकारण व्रत करके अपनी आत्म को संस्कारित किया था। दिनांक 8.1.06 रविवार, पारेख हॉल में दोपहर 2 बजे क्षपक श्री रतीभाई दोशी की अमृतभाई शाह एवं अशोकभाई शाह की अध्यक्षता में विनयांजली अर्पित की।सभाका संचालनमंत्री श्रीसरेश भाई मेहता ने किया। स्वामी, प्रकाशक एवं मुद्रक : रतनलाल बैनाड़ा द्वारा एकलव्य ऑफसेट सहकारी मुद्रणालय संस्था मर्यादित, जोन-1, महाराणा प्रताप नगर, भोपाल (म.प्र.) से मुद्रित एवं 1/205 प्रोफेसर कॉलोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) से प्रकाशित / Jain Education International www.jainelibrary.org sonarse Only

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