Book Title: Jinabhashita 2006 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 33
________________ मुनि श्री प्रशान्तसागर जी कृत ग्रन्थ का विमोचन | संचालित 'भुजबली श्राविकाश्रम' मातुश्री रत्नम्मा हैगड़े की 15 फरवरी को बीना में हो रहे पंचकल्याणक महोत्सव | उदारता का एक प्रेरक स्मारक कहा जा सकता है। में ज्ञानकल्याणक के पावन दिवस पर संत शिरोमणि आचार्य | महामस्तकाभिषेक के लिये श्रवणबेलगोला जाने के पूर्व उसी श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री प्रशान्तसागर | श्राविका श्रम की व्यवस्था देखने वे धर्मस्थल से कारकल के जी महाराज कृत जिनसरस्वती ग्रन्थ का विमोचन हुआ। इस | मार्ग पर चली थीं, पर होनी की अटल ने उनकी इस छोटी ग्रन्थ में 56 अध्याय हैं, जो चार अनुयोगों में विभक्त हैं। | सी यात्रा को 'महायात्रा' में बदल दिया। प्रश्नोत्तर शैली के इस ग्रन्थ की सभी ने भूरिभूरि प्रशंसा की। रत्नम्मा जी अपने पीछे एक सुपुत्री तथा चार सुपुत्रों का ग्रन्थ का विमोचन पंचकल्याणक में बने भगवान के माता- 1 भरा-परा परिवार छोड गई हैं परन्त वास्तविकता यह है कि पिता एवं सौधर्म इन्द्र दिनेश चक्रवर्ती एवं डॉ. ऋषभ बरया | उनके जाने से लाखों लोगों ने मातृ-वियोग की वेदना का ने किया। अनुभव किया है। लेखक : पू. मुनि श्री प्रशान्त सागर जी महाराज हैगडे परिवार के शोक में सहभागी होने के लिये चारों निर्देशन : पू. मुनि श्री निर्वेग सागर जी महाराज ओर से उनके परिचितों, शुभचिंतकों और भक्तों का ताँता संपादन : ब्र. भरत, स्लीमनाबाद लगा है। हर कोई शोक से संतप्त है, फिर भी दूसरों को प्रकाशक : धर्मोदय साहित्य प्रकाशन, स्लीमनाबाद । | संवेदना देने में संलग्न दिखाई दे रहा है। आनंद जैन नीरज जैन रत्नम्मा हैगड़े का चिर वियोग शिक्षाविद् पन्नालाल जी गंगवाल का सत्कार 21 जनवरी 2006 की शाम को एलोरा (औरंगाबाद) स्थित श्री गहरा अंधेरा कुछ जल्दी छा गया, पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन ब्रह्मचर्याश्रम धर्मस्थल के धर्माधिकारी राजर्षि डॉ. वीरेन्द्र हैगड़े की माता जी मातुश्री गुरुकुल के महामंत्री, ज्येष्ठ सामाजिक रत्नम्मा हैगड़े के आकस्मिक वियोग कार्यकर्ता श्रीमान् पन्नालाल जी गंगवाल को श्री चिंतामणि दिगम्बर जैन अतिशय का समाचार जिसने जहाँ सुना वहीं क्षेत्र कचनेर (औरंगाबाद) द्वारा वार्षिक शोक में डूब गया। यात्रा महोत्सव के उपलक्ष्य में समाज रत्नम्मा जी की वात्सल्य और ममता भरी छवि सहसा के दीपस्तंभ सम्मानपत्र प्रदान कर गौरवान्वित किया गया। आँखों में छा गई और इनके विछोह की पीड़ा हर आँख से गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के प्रणेता परमपूज्य आचार्य श्री टपक पड़ी। क्षण भर में समाचार सर्वत्र फैल गया कि सड़क समंतभद्र महाराज के आदेशानुसार तीर्थरक्षा शिरोमणि परमपूज्य दुर्घटना ने रत्नम्मा जी को हम से सदा के लिये छीन लिया 108 आचार्य श्री आर्यनंदी महाराज द्वारा विश्वविख्यात प्राचीन गफाओं के कारण जिसे पर्यटनस्थल का महत्त्व प्राप्त ऐसे जन-कल्याण और साधु-संतों की सेवा 78 वर्षीय रत्नम्मा एलोरा ग्राम में सन् 1962 में श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन जी के जीवन का व्रत बन चुका था। उनकी प्रेरणा से कर्नाटक ब्रह्मचर्याश्रम गुरुकुल की स्थापना की और आचार्य समंतभद्र में अनेक जनसेवी संस्थाओं की स्थापना हुई थी। कुछ संस्थाएँ जी और आर्यनंदी जी ने इस गुरुकुल संस्था के सूत्र श्री तो उनकी सहायता से ही चल रही थीं। कर्नाटक की जनता पन्नालाल जी गंगवाल के हाथ सौंपे और तब से अब तक 42 ने “दानचिंतामणि अत्तिमव्वे प्रशस्ति" समर्पित करके उनकी वर्ष श्री गंगवाल संस्था के महामंत्री पद पर कार्यरत हैं। परोपकारी प्रवृत्ति को रेखांकित किया था। आठों याम पर - श्री पन्नालालजी गंगवाल ने अपनी युवावस्था में हैदराबाद हित की कामना में डूबी रहने वाली उन जैसी ममतामयी मुक्ति संग्राम में अपना सक्रिय योगदान दिया। जिसके महिला कर्नाटक में आज दूसरी दिखाई नहीं देती। फलस्वरूप भारतसरकार की ओर से स्वातंत्र्य सैनिक के धर्मस्थल में भगवान बाहुबली की 39 फुट उत्तुंग विशाल | रूप में आपका गौरव किया गया। स्वातंत्र्य पूर्व काल में मूर्ति रत्नम्मा जी की अटल भक्ति और अडिग संकल्प शक्ति आपने हिन्दी एम.ए. की पदवी संपादन की। आप इस संस्था का जीवन्त प्रतीक बनकर प्रतिष्ठित हुई थी। कारकल में मार्च 2006 जिनभाषित / 31 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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