________________
चलाएं। सभी वस्तुएँ मौसम, ऋतु के अनुसार मर्यादित भी होनी चाहिए एवं मसाले पूर्ण रूप से पिसे हुए हों । तथा इनमें सकरे हाथ न लगाएं।
5. मूँग की दाल छिलके वाली ही बनाएं तथा दाल का पानी भी घी मिलाकर देने से लाभदायक होता है ।
6. जल के आगे-पीछे कोई रस न चलाएं तथा नीबू के साथ घी विषवर्धक होता है।
7. दूध के आगे-पीछे खट्टे पदार्थ, दही, रस आदि भी न
चलाएं।
मीठा अनार,
8.
वात शांति के द्रव्य- गेहूँ, मूँग, घी, मुनक्का, पके आम, आँवला, कैंथ, हर्रे, गौ दूध, सेंधा नमक । पित्त शांति के द्रव्य- मधुर रस, चावल की खीर, मुनक्का, आँवला, छुआरा, ककड़ी, केला, घी, दूध । कफ शांति के द्रव्य- चना, गुड़, सौंठ, काली मिर्च, पीपर, सौंठ युक्त दूध |
आहार सामग्री के भक्ष्य, अभक्ष्य की जानकारी एवं आवश्यक निर्देश
सभी ऋतुओं में एक समान
48 मिनिट - दूध (बिना उबला), छाछ (बाद में जल अथवा मीठा मिलाने पर), पिसा नमक ।
6 घंटे- पिसा नमक (मसाला मिलाने पर), खिचड़ी, रायता, कढ़ी, दाल, सब्जी ।
24 घंटे- दूध (उबला), दही (गर्म दूध का), नमक (पिसा गर्म ), मौन वाले पकवान ।
आटा (सभी प्रकार का ), पिसे मसाले- शीत काल 7 दिन, ग्रीष्मकाल 5 दिन, वर्षा काल 3 दिन
बूरा शक्कर का शीत काल 1 माह, ग्रीष्मकाल 15 दिन, वर्षाकाल 7 दिन
घी, तेल, गुड़- 1 वर्ष अथवा जब तक स्वाद न बिगड़े गुड़ मिला हुआ दही/ छाछ सर्वथा अभक्ष्य है, मीठा मिले दूध का जमाया हुआ दही भी अभक्ष्य है । रसचलित- स्वाद बदल गया हो,
बदबूदार
पदार्थ
तथा फटा हुआ दूध आदि त्याज्य है ।
अजान फल- जिसको हम पहचानते नहीं हैं, ऐसे फल, पत्ते आदिं संयमी के लिए योग्य नहीं हैं ।
अतितुच्छ फल- जिसमें बीज नहीं पड़े हों, ऐसे बिल्कुल कच्चे छोटे-छोटे फल भी लेने योग्य नहीं हैं। अभक्ष्य के भेद- त्रस हिंसाकारक, बहुस्थावर
हिंसाकारक, प्रमाद कारक, अनिष्ट और अनुपसेव्य
दूध अभक्ष्य (अशुद्ध )- प्रसूति के बाद भैंस का दूध 15 दिन, गाय का दूध 10 दिन, बकरी का दूध 8 दिन तक अभक्ष्य है।
निर्देश
1.
Jain Education International
7.
12 घंटे- छाछ (विलौते समय जल डालने पर ), रोटी, पूड़ी, हलवा, बड़ा, कचौड़ी
2.
जल को तीन बर्तनों में तीन जगह रखना चाहिए, जिसकी गर्माहट में थोड़ा-थोड़ा अंतर हो, जिससे श्रावक साधु की अनुकूलता के अनुसार दे सकें।
आहारदान यदि दूसरे के चौके में देवें, तो अपनी आहार सामग्री हाथ में अवश्य ले जाएं।
चक्की से जब भी पीसें या पिसवाएं तो वह साफ होना चाहिए, क्योंकि उसमें कोई जीव-जंतु भी हो सकते हैं तथा उसमें अमर्यादित आटा भी लगा रहता है। अतः शीत, ग्रीष्म, वर्षा ऋतु में क्रमशः 7, 5, 3 दिन में चक्की अवश्य साफ करें।
हाथ में कोई आहार सामग्री लगी हो तो उन हाथों से आहार सामग्री न दें |
6.
हरी क्या है?- जो फल, साग आदि वनस्पति जो अभी गीली है, हरी कहलाती है तथा धूप में पूर्णतः सूख जाने पर हरी नहीं रहती । जैसे- सौंठ, हल्दी आदि ।
3.
4.
5.
कमण्डलु में जल 24 घंटे की मर्यादा (उबला हुआ ) वाला ही भरें, ठंडा या कम मर्यादा वाला नहीं।
अतिथि संविभाग व्रत वैयावृत्य के समान फलदायी है। पड़गाहन के लिए द्वार पर प्रतीक्षा करने से ही संपूर्ण आहार का फल मिलता है। साधु नहीं आने पर संक्लेश नहीं करना चाहिए । निरंतराय आहार हों, ऐसी भावना भानी चाहिए।
8.
परिवार में सूतक - पातक होने पर तथा शवदाह में सम्मिलित होने पर भी आहारदान नहीं दें ।
9.
आहार देते समय कोई भी मृत्यु सम्बन्धी बातें, पीप चमड़ा आदि असभ्य शब्द बोलने से अंतराय हो सकता है ।
नोट
इस प्राकविधि का उपयोग आप स्वयं करें एवं दूसरे लोगों को बताकर करवाएं। इस लेख की तभी पूर्ण सार्थकता हो सकती है। अशुद्धियों पर ध्यान न दें। कमियों को सूचित करें। जिससे और सुधार किया जा सके।
For Private & Personal Use Only
क्षेत्रीय अधिकारी, द.प.सा. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
शाखा देवरी (सागर) म.प्र.
मार्च 2006 जिनभाषित / 25
www.jainelibrary.org