Book Title: Jinabhashita 2006 03
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 25
________________ फल, साग की सही प्रासुक विधि एवं सावधानियाँ पं. राजकुमार जैन 1. संयमी या व्रती किसी भी वनस्पति को या तो रस के | इनके बीच में त्रस जीव रह सकते हैं। रूप में, साग के रूप में, शेक (गाढ़ा रस) के रूप में, | 9. किसी भी फल का बीज प्रासुक नहीं हो पाता है, चटनी के रूप में लेते हैं। फल के रूप में जैसे गृहस्थ | इसलिए आहार में बीज निकालकर ही सामग्री चलाएं। लेते हैं, वैसे नहीं लेते। चाहे सब्जी, फल, रस, चटनी आदि कुछ भी हो। 2. फलों को जैसे नाशपाती, सेव, केला, अंगूर, आलूबुखारा, | 10. आयुर्वेद शास्त्र का भी कहना है कि अग्निपक्व, जल अमरूद को 50 या 100 ग्राम जल (वस्तु मात्रानुसार) और साग-सब्जी अधिक जल्दी हजम हो जाती है एवं में फलों के टुकड़े बनाकर कढ़ाही में डालकर कटोरे वात, पित्त, कफ का प्रकोप न होने से शरीर निरोग आदि से ढंककर 5-10 मिनट उबालने से भाप के द्वारा | रहता है। अंदर बाहर प्रासुक हो जाएंगे। | 11. ड्राईफ्रूट जैसे-काजू, बादाम, पिस्ता, मूंगफली के दो 3. प्रासुक वस्तु का स्पर्श, रस, गंध, वर्ण बदलना चाहिए। भाग करके एवं मुनक्का को बीज रहित करके दें। एवं लौकी की सब्जी जैसे मुलायम हो जाए तभी सही | 12. किसमिस, मुनक्का को जल में गलाने से उनके तत्त्व प्रासुक मानी जाती है, क्योंकि साधु अधपका हुआ नहीं निकल जाते हैं या तो गलाएं नहीं, यदि गलाएं तो लेते हैं, कारण कि अंगुल के असंख्यातवें भाग में जीव उसका जल अवश्य चलाएं। रहते हैं। 13. घुना अन्न जैसे-चना, बटरा (मटर), मूंग, उड़द आदि 4. लौकी, परवल, करेला, गिलकी, टिंडा आदि की साग | तथा बरसात में फफूंदी लगी वस्तु अभक्ष्य ही होती है। बनाई जाती है, जो उबालने, तलने से प्रासुक होती है। दही, छाछ के साथ दो दल वाले मूंग, उड़द, चना, 5. बीज निकालकर चटनी बनाने से भी प्रासुक हो जाते | अरहर आदि जिनका आटा बन जाता है, वे द्विदल हो हैं। लेकिन ज्यादा बड़े-बड़े टुकड़े नहीं रहना चाहिए। जाते हैं, जो अभक्ष्य हैं। दही, छाछ के साथ दो दल यदि उबालकर चटनी बांटते हैं तो टुकड़े भी प्रासुक वाले जिनमें तेल निकलता है। जैसे-मूंगफली, बादाम रहेंगे। जैसे- टमाटर, कैंथा, अमरूद आदि बीज वाली | आदि द्विदल नहीं होते। साग। 14. नमक बाँटकर जल में उबालने से ही सही प्रासुक होता 6. खरबूजा, पपीता, पका आम, चीकू, इनको छिलका है। लेकिन बाँटकर गरम कर लेने पर भी प्रासुक मान तथा बीज अलग करके शेक (मिक्सी से फेंटकर) लेते हैं। साधुओं को दोनों तरह का नमक अलगबना लें, लेकिन इसमें कोई टुकड़ा नहीं रहे। वह टुकड़ा अलग कटोरी में दिखाएं। अप्रासुक माना जाता है। 15. कच्चे गीले नारियल को घिसकर बुरादा बनने के बाद 7. नीबू, मौसम्मी के दाने अप्रासुक होते हैं, अतः उन्हें गर्म | गर्म करके बाँटकर चटनी बनाने से ही प्रासुक होता है। न करें। बल्कि रस निकालें वही प्रासुक है अनार, 16. भोजन सामग्री को दूसरी बार गर्म करना, कम पकाना मौसम्मी, संतरा, अनानास, नारियल, सेव, ककड़ी, लौकी (कच्चा रह जाना) ज्यादा पकाना (जल जाना) यह आदि का रस प्रासुक हो ही जाता है। रस निकालते द्विपक्वाहार कहलाता है। यह साधु के लेने योग्य नहीं समय हाथ के घर्षण से प्रासुक हो जाता है। सभी रस होता है तथा आयुर्वेद में भी ऐसे भोजन को विषवर्धक काँच के बर्तन, शीशी आदि में रखें, नहीं तो करीब 30 माना गया है। चौकों में रोटी कच्ची रहती है तो उससे मिनिट बाद से विकृत (खराब) होने की संभावना पेट में गैस बनती है, ध्यान रखें। रहती है। 17. सब्जी वगैरह में अधिक मात्रा में लालमिर्च का प्रयोग 8. कच्ची मूंगफली, चना, मक्का, ज्वार, मटर आदि जल नहीं करें, अलग से रखें क्योंकि भोजन में अधिक मिर्च में उबालकर या सेंककर प्रासुक करें तथा सूखी मूंगफली, होने पर साधु को पेट में जलन हो सकती है। उड़द, मूंग, चना आदि को साबुत नहीं बनाएं क्योंकि | 18. आहार सामग्री सूर्योदय से दो घड़ी पश्चात् तथा सूर्यास्त मार्च 2006 जिनभाषित / 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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