Book Title: Jinabhashita 2006 03 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 6
________________ बड़े बाबा के मंदिर की जीर्णता पं. नाथूलाल जी शास्त्री कुण्डलपुर (दमोह) में गोलाकार छोटी पहाड़ी के | कारण व बाह्य दीवाल पर क्रेक के निशान देखे गये। 1976 उत्तरी सिरे पर 60 मंदिर हैं, जिनमें मढ़िया-गुमटी-टोंक | से कुण्डलपुर में परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज आकार के कुछ लघु-बड़े मंदिर हैं। सन् 1554 से यह | का 5 बार चतुर्मास हुआ। आचार्यश्री ने लगभग 600 दिन तीर्थक्षेत्र कहलाता है। इनमें मूर्तियाँ बाहर से लाकर रखी गई | भगवान के दर्शन किए होंगे। 1996 में आचार्य श्री विद्यासागर हैं। 1548 से 1996 तक की मूर्तियाँ हैं। धर्मशाला के निकट | जी महाराज के समक्ष नीचे प्रवचन हाल में विशाल सभा में वर्द्धमान सागर सरोवर है। तालाब के किनारे से वन्दना | नये मंदिर के निर्माण का निर्णय लिया गया। 1995 में साहूजी प्रारम्भ होती है। ग्यारहवाँ मंदिर बड़े बाबा का है। इस मंदिर | ने भी स्वीकृति दी थी। अहमदाबाद के वास्तुविद् सी.वी. में 12 फुट 6 इंच की यह प्रतिमा पद्मासन पश्चिम मुख | सोमपुरा एवं गोंदिया (महाराष्ट्र) के वास्तुविद् आर. पच्चिकर विराजमान है। कला की दृष्टि से 11वीं शताब्दी की दिखती | के निर्देशन में बड़े बाबा के वर्तमान मंदिर के पास ही100 है। चिह्न व प्रशस्ति नहीं होने से इसका नाम सरोवर के नाम | फुट दूर नये मंदिर का पहाड़ी के नीचे 3 मार्च 1999 को के समान वर्द्धमान या महावीर प्रसिद्ध रहा। यहाँ के लेख के | शिलान्यास किया गया। नये स्थान को भूकम्परहित बनाने में अनुसार 1757 में मन्दिर का जीर्णोद्धार हुआ। महाराजा 1 करोड़ का व्यय स्वाभाविक है। अतः भूमि खोदने आदि छत्रसाल भी इसी समय आये। शुरू से ही यह विशाल व | को देखकर विरोधी लोगों द्वारा दुष्प्रचार भी किया गया। मूर्ति अच्छे रूप में बना ही नहीं। . के स्थानांतरण के विरोध हेतु मूर्ति में क्रेक आया, वह नष्ट बड़े बाबा के आसन (बैठक) का पाषाण दो खण्डों | | हो जाएगी आदि की बातें सुनकर सर्वत्र दुष्प्रभाव पड़ा। को जोड़कर बना है। गर्भगृह में परिवर्तन भी कई बार हुए पुरातत्त्व विभाग की उच्च स्तरीय टीम ने अवलोकन हैं। दिवालें कोई व्यवस्थित नहीं हैं। दो मूर्तियाँ बडे बाबा के | कर मर्ति में दरार के दावे को निरस्त कर दिया, यह समाचार आजू-बाजू कहीं मंदिर से लाई गई स्थापित हैं। शुभचन्द्रगणी | 13 मई 2000 को जबलपुर के दैनिक भास्कर में प्रमुखता से ने जीर्ण-शीर्ण स्थिति देखकर जीर्णोद्धार कराया। ब्रह्मचारी | प्रकाशित हुआ है। नेमीसागर ने छत का काम पूरा किया। महाराजा छत्रसाल ने बड़े बाबा की बैठक आदि से यह संकेत मिलता है इस मंदिर, बड़े प्रवेश द्वार व सरोवर का भी जीर्णोद्धार | कि मूर्ति पटेरा आदि कहीं से किसी व्यापारी द्वारा बैलगाड़ी कराया। 1979 में श्री साहू अशोककुमार जी के परिवार द्वारा में उसके स्वप्नानसार लाई गई और यहाँ वर्तमान स्थान पर भी अपनी ओर से जीर्णोद्धार हेतु सहायता की गई। मंदिर में | रुक गई। यहीं इनका मंदिर बना दिया गया। आततायी मुगल 4 वेदी व छह शिला फलक पर भी मूर्तियाँ स्थापित की गई | शासक द्वारा हथौड़े से प्रहार होने पर भी अपने अतिशय से हैं। उस गर्भगह में दर्शकों के लिये स्थान नहीं रहा. वहाँ मर्ति सरक्षित रही। सं. 1757 में महाराजा छत्रसाल आये और प्रकाश भी नहीं है। यह शिला-फलक दीवारों पर लगे हैं। उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने से बड़े बाबा के मंदिर मंदिर के सामने चबूतरे पर पाषाण पर चरण चिह्न और | हेतु कुछ न कर विरोधी मुगल से युद्ध में विजय पाकर पीछे सामने "कुण्डगिरौ श्रीधरस्वामी'' लिखा हुआ होने से यह वहाँ सरोवर के घाट क्षेत्र, प्रवेश द्वार व इस बड़े बाबा के क्षेत्र सिद्धक्षेत्र एवं बड़े बाबा के सिर के दोनों ओर जटा होने । | मंदिर के जीर्णोद्धार तथा उसी समय पंचकल्याणक के काम से वे भगवान ऋषभनाथ घोषित हुए। में सहयोग किया। यह सब लिखने का आशय यह है कि मंदिर के पीछे भी जीर्ण-शीर्ण स्थिति रही है। मंदिर | पुरातत्त्व विभाग का काम मूर्तियों की प्राचीनता की रक्षा का शिखर भी कोई अच्छा नहीं रहा। 1999 में जबलपुर- | करना है। यह बड़े बाबा का मंदिर प्राचीन बिल्कुल नहीं दमोह के भूकम्प का असर होने से बड़े बाबा का एक भाग | इसके सम्बन्ध में अपना कथित नकारात्मक रवैया छोड़कर डेढ़ इंच झुक गया। पश्चिम मुख, पाषाण एवं वास्तु दोष के | नवनिर्माण हेतु समर्थन देना चाहिये। ऐसा अन्यत्र भी हुआ 4/मार्च 2006 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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