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जैन संस्कृति रक्षा मंच जैनत्व की चिंता क्यों नहीं कर पाया?
निर्मल कुमार पाटोदी बुन्देलखण्ड का तीर्थराज कुण्डलपुर प्रथम तीर्थंकर | की न निर्माण कार्यों का अवलोकन किया। इसके विपरीत आदिनाथ भगवान बड़े बाबा का चमत्कारी दिगम्बर जैन | राष्ट्र के महान् संत गुरुवर विद्यासागर जी महाराज को अप्रत्यक्ष सिद्ध क्षेत्र है। सन् 1998-99 में संबंधित विशेषज्ञों के दल ने | बदनाम करने का प्रयास किया है। निर्माण कार्यों के खिलाफ मंदिर की जीर्ण-शीर्ण हालत से उत्पन्न खतरे के प्रति सचेत | न्यायालय के माध्यम से अवरोध उत्पन्न किया है। समाज में किया था। वास्तुविद् सी.वी. सोमपुरा ने वर्तमान में वायव्यमुखी | विवाद की सोचनीय स्थिति उत्पन्न की है। जिस संस्था को बड़े बाबा की इस प्रतिमा को पूर्व या उत्तरमुखी करके दिगम्बर जैन महासमिति के समान भारत सरकार ने समाज वास्तुदोष दूर करने की अनिवार्यता पर भी बल दिया था। के प्रतिनिधि के रूप में मान्यता नहीं दी, उसने कुण्डलपुर विशेषज्ञों के सुझावानुसार प्रबंधकारिणी समिति ने आचार्य | क्षेत्र के भव्य निर्माण कार्यों को जहाँ प्राचीन मूर्तियों का श्री विद्यासागरजी महाराज का आशीर्वाद प्राप्त कर प्राचीन | संरक्षण किया जाने वाला है, रुकवाने का अवांछनीय कार्य भारतीय पंचायतन शैली के अनुरूप पाषाण निर्मित हजार किया है। ऐसी संस्था के रजिस्ट्रेशन का समाजहित में क्या साल से भी अधिक आयु वाला, भूकम्प के झटके सहने में | औचित्य है? आचार्य मेरूभूषण जी महाराज ने इस जैन समर्थ, बिना सीमेंट और लोहे के उपयोग के भव्य मंदिर संस्कृति रक्षा मंच के प्रमुख पदाधिकारियों को गिरनार जी निर्माण का प्रस्ताव किया, जो सन् 1999 में कुण्डलपुर में | सिद्धक्षेत्र मामले में उच्च न्यायालय में चल रहे प्रकरण में आचार्य श्री की उपस्थिति में विशाल धर्मसभा में निर्विरोध | पक्षकार बनने का पत्र लिखा था, किंतु कुछ नहीं किया गया। स्वीकार हुआ। देश के जाने-माने प्रतिष्ठाचार्य संहितासूरी क्या जैन संस्कृति रक्षा मंच के पदाधिकारीगण अपना पण्डित नाथूलालजी शास्त्री, इन्दौर से शास्त्रसम्मत परामर्श | स्पष्टीकरण देंगे? उन्होंने श्री गिरनारजी तीर्थ राष्ट्रस्तरीयकरके उनकी उपस्थिति में नये मंदिर का शिलान्यास किया | एक्शन-कमेटी के कार्यों की हर संभव आलोचना की, गया। तब से बड़े बाबा की मूर्ति व साथवाली जैन प्रतिमाओं असहयोग किया। केसरियाजी, पावापुर, अंतरिक्ष पार्श्वनाथ, का संरक्षण अनिवार्य हो जाने से नये मंदिर का निर्माण प्रारंभ पावागढ, सम्मेदशिखर जी तीर्थों के अस्तित्त्व पर आये संकट करना पड़ा।
के निवारण के लिये समाज को बताया जायेगा कि जैन घर को आग लगा दी घर के चिरागों ने संस्कृति रक्षा मंच वालों ने क्या कुछ किया? समाज की धरोहर के रक्षार्थ किये जा रहे भव्यनिर्माण को कुण्डलपुर जैसे निर्माणकार्य पूर्व में भी राजस्थान के विवाद का रूप समाज के एक अस्तित्वहीन, आधारहीन | अतिशय क्षेत्र पद्मपुरा में नवनिर्माण करके किये गये हैं। श्री जैन संस्कृति रक्षा मंच ने पिछले दिनों दे दिया है। इस महावीर जी जैसे प्रसिद्ध अतिशय क्षेत्र में महावीर भगवान संस्थान ने अब तक कितने नव-निर्माण किये हैं? कितने की अतिशयकारी प्रतिमा जहाँ से निकली, उसे भी उसी तीर्थक्षेत्रों के पुरातत्त्व की रक्षा की है? कितनी धनराशि तीर्थ स्थल के बजाय अन्यत्र विराजित किया गया है। यह बात क्षेत्रों पर खर्च की है? इस तीर्थ रक्षा की संस्था ने अपने समूचा जैन समाज जानता है। सपने में भी नहीं सोचा जा उद्देश्यों के अनुरूप गठन से लेकर अब तक कितना |
| सकता है कि जैन धरोहर के संरक्षक आचार्य श्री विद्यासागर सकारात्मक योगदान दिया है? ऐसी जानकारी पूरे देश के जी महाराज तथा धर्म क्षेत्र कुण्डलपुर की प्रबंधकारिणी बड़े
न कभी प्रचारित की गई और न ही प्रसारित | बाबा भगवान ऋषभनाथ जी व अन्य मूर्तियों जैसी धरोहरों की गई। सिर्फ संस्था के शीर्ष पत्र पर छपे महानुभावों के को कभी क्षति पहुँचाने की सोच भी सकते हैं। नामों व उनके प्रभावों को भुनाने का कार्य ही संभवतः संस्था पुरातत्त्व विभाग कुण्डलपुर में अपना के पदाधिकारियों ने किया है? जो स्वयं कुछ रचनात्मक
योगदान बतावे योगदान नहीं दे सके हैं, उन्होंने कुण्डलपुर सिद्धक्षेत्र पर | | भारत सरकार के पुरातत्त्व विभाग को हमारे समाज के धर्मायतन की रक्षार्थ किये जा रहे धार्मिक निर्माणकार्यों की जैन संस्कृति के इन तथाकथित धर्मरक्षकों ने ही शिकायत प्रबंधकारिणी समिति से सम्पर्क करके न जानकारी प्राप्त | करके सक्रिय किया है, मजबूर किया है। कुण्डलपुर तीर्थक्षेत्र
10/मार्च 2006 जिनभाषित
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