Book Title: Jin Pooja Sangraha
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Rushi Nankchand

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२ www.kobatirth.org ॥ पूजा ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ त्रूटक ॥ वधाविया जिनवर हर्ष बहुलै धन्य कृत पून्यए । त्रैलोक्य नायक देव दीठो मुक समो कुण अन्य ॥ हे जगत जननी पुत्र तुमचो मेरु मान वरकरी । उच्छंग तु मचै बलिय धापिस तमां पुन्ये जरी ॥ ॥ ढाल ॥ सुरनायक जी जिन निज कर कमलें ठव्या । पांच रूपैंजी अतिशय महिमा यें स्तव्या ॥ नाटक विधजी तब बत्तीस याग ल है । सुर कोडीजी जिन दरसण नें ऊमहै ॥ त्रूटक ॥. सुर कोड कोडी नाचती बलि नाथ शुचि गुण गावती । अपरा कोडी हाथ जोडी हाव भाव दिखावती ॥ जयजयो तूं जिन राज जगगुरु एमई प्रासीस ए । म त्राण चारण आधार जीवन एक तूं जगदीसए ॥ ॥ ढाल ॥ सुर गिरवरजी पांडुक बनमें चिहूं दिसैं गिरि सिल परजी सिंहासन सासयबसै ॥ ति हां प्राणीजी शर्क जिन खोलै गह्या । चउ For Private And Personal Use Only

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