Book Title: Jin Pooja Sangraha
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Rushi Nankchand
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॥ पूजा ॥
शवधि विशेष जाणी लह्यो हर्ष अपार ॥ निय अमर शमरी संग कमरी गावती गण बंद । जिन जननि पार्स शावि पोहती गहकती आणंद । हे माय तें जिनराज जा यो शचि वधायो रम्म । शम्ह जम्म निम्म ल करण कारण करिस सूइय कम्म । तिहां भूमि शोधन दीप दर्पण वाय विजण धार तिहां करिय कदली गेह जिनवर जननि म जन कार ॥ वर राखडी जिन पाणि बांधी दियें एम शासीस । जुग कोडकोडी चिरंजी वो धर्म दायक ईश ॥
॥ ढाल इकवीसानी ॥
जग नायक जी त्रिनुवन जन हित का रए । परमातम जी चिदानंद घन सारए । जिन रयणी जी दशदिस उजलता धरै । शन लगनें जी ज्योतिष चक्रते संचरै । जिन जनम्या जी जिण श्वसर माता घरै तिण श्वसर जी इंदासन पिण थरहरै ॥
॥Jटक ॥ थरहरें शासन इंद चिंते कवण श्वसर
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