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॥ पूजा ॥
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ए वण्यो । जिन जन्म उच्छव काल जा णी तिहि शनंद ऊपनों । निज सिछ संपति हेतु जिनवर जांणि लगतै ऊमह्यो । विकसंतवदन प्रमोदबधतै देवनायकगहगह्यो
॥ ढाल ॥ तब सुरपति जी घंटा नाद करावए। सुर लोक जी घोषणां एह दिरावए ॥ नर खेजी जिनवर जन्म ऊवो अछ । तसु नगरौं जी सुरपति मंदरगिर ग?॥
॥ टक ॥ गबै मंदर शिखर ऊपर नवन जीवन जिन तणों। जिन जन्म उच्छव करण कारण आवज्यो सवि सुरे गणो । तुम शुछ समकि त थास्ये निर्मल देवाधि देव निहालतां आ पणां पातिक सर्व जास्य नाथ चणर पखा लतां॥
॥ढाल॥ इम सोनल जी सुरवर कोडी बऊ मि ली जिन वंदन जी मंदरगिर साहमी चली सोहमपति जी जिन जननी घर साविया जिन माता जी बंदी स्वामि बधाविया ॥
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