Book Title: Jainagama Thoak Sangraha
Author(s): Chhaganlal Shastri
Publisher: Jainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam

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Page 11
________________ [३] ५४६ ५४८ ५५७ ५२८ ५६८ ५७१ ५७३ ५७५ ५७८ ५८१ ५८६ ५६० ५२ तीर्थकर गोत्र नाम बांधने के २० कारण ५३ परम कल्याण के ४० बोल ५४ तीर्थकर के ३४ अतिशय ५५ ब्रह्मचर्य की ३२ उपमा ५६ देवोत्पत्ति के १४ बोल ५७ षट् द्रव्य पर ३१ द्वार ५८ चार ध्यान ५६ आराधना पद ६० बिरह पद ६१ संज्ञा पद ६२ वेदना पद ६३ समुद्घात पद ६४ उपयोग पद ६५ उपयोग अधिकार ६६ नियंठा ६७ संजया ( संयति) ६८ अष्ट प्रवचन (५ समिति ३ गुप्ति) ६६५२ अनाचार ७० आहार के १०६ दोष ७१ साधु समाचारी ७२ अहोरात्रि की घड़ियों का यन्त्र ७३ दिन पहर माप का यन्त्र ७४ रात्रि पहर देखने (जानने ) की विधि ७५ १४ पूर्व का यन्त्र ७६ सम्यक् पराक्रम के ७३ बोल ७७१४ राज लोक ७८ नारकी का नरक वर्णन ७६ भवनपति विस्तार ५६२ ६०५ ६१६ ६२० ६२४ ६३७ ६३८ ६४० ६४२ ६४३ ६४६ ६४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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