Book Title: Jain Yug 1938
Author(s): Mohanlal Dipchand Chokshi
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 141
________________ तारनुसनामुं:- "@सघ."-" HINDSANGHA." Regd. Not F. 1996. ॥ नमो तित्त्थस्स ॥ 88888888888888888064 EUSE जमशासIAS न युग. The Jain Yuga. See ENT [* श्वेतivR 31-३२-सनु भु५५.] । ※爸爸荣登“老老爸的究会※老爷爷老乡会会变兒安定李荣 ती:-मोहनदास पयह योउसी. વાર્ષિક લવાજમ રૂપીઆ બે घुटन- हमान. १५ नु १२ भुः। તારીખ ૧૬ મી અકટોબર ૧૯૩૮. ६ मी. नयु ७ भु. * सत्य-अहिंसा का पुजारी बनो. * आप मेरे पुजारी न बने। सत्य है, अहिंसा है, इनके पुजारी आप बन सकते है। आपने जिस चीजको अपना लिया वह स्वतंत्र रुप से आपकी हो गई । और जो स्वतंत्र रुप से आपकी हो, वही आपकी है। खूराक की तरह आपने जितने को हजम किया, वही काम आयगा। किसी आदमी के ख्यालात को हमने ग्रहण तो किया, पर हजम नही किया, बुद्धि से ऊनको ग्रहण कर लिया पर ऊनको हृदयस्थ नही किया, ऊन पर अमल नही किया, तो वह एक प्रकारकी बदहजमी ही है, वुद्धि का विलास है। विचारों की बदहजमी खूराक की बदहजमी से कहां बुरी है। खूराक की बदहजमी के लिये तो दवा है, पर विचारो की बदहजमी आत्मा को बिगाड देती है। ___ जो बात में करना चाहता हूं और जो करके मरना चाहता हूं वह यह है कि सत्य और अहिंसा को संगठित करूं। अगर वह सब क्षेत्रों के लिये उपयुक्त नहीं है, तो वह झुठ है। मे कहता हूं कि जीवन को जितनी विभूतियां है सब में अहिंसा का उपयोग है। याद रहे कि सत्य और अहिंसा मठवासी संन्यासियों के लिये नहीं हैं। अदालतें, धारा-सभायें और इतर व्यवहारों में भी ये सनातन सिद्धान्त लागू होते है। सत्य और अहिंसा में मेरी श्रद्धा बढती ही जाती है। और में अपने जीवन में जैसे जैसे उनपर अमल करता हू, में भी बढ़ता ही जाता है। उसीके साथ मेर विचारों में नयापन आता है। -महात्मा गांधीजी.

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