Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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x... शोध प्रबन्ध सार
भारतीय संस्कृति में किशोरावस्था के डगमगाते कदमों को रोकने के लिए विवाह एक अपूर्व उपाय माना गया है। विवाह रूपी बंधन की बेड़ी व्यक्ति को सीमा में रहने की अमूल्य शिक्षा देती है ।
शकुंतलाजी कालिदास की शकुंतला की भाँति ही जीवन के हर विषम मोड़ पर आपका प्रतिबिम्ब बनकर आपके साथ रहती है। वे आपके कर्तव्यों के प्रति ही नहीं अपितु धर्म कार्यों में भी पूर्ण रूपेण आपकी साझेदारी निभाती है। धर्म कार्यों के प्रति आपका उल्लास एवं तत्परता ने आपको समाज की वरिष्ठ एवं आदर्श महिलाओं में सम्मिलित कर दिया है। परमात्म भक्ति एवं वैयावच्च आपका कर्म क्षेत्र है। तप के प्रति रही तीव्र उत्कंठा एवं अनुमोदन भाव सन् 2012 में कल्पनाओं के गगन से साक्षात जमीन पर उतर आए। स्वप्न रूप लगने वाली आयम्बिल, उपवास आदि की तपस्या आपकी धर्मचर्या का अभिन्न अंग बन गई। यह सब आपकी धर्मनिष्ठा एवं गुरु श्रद्धा का ही परिणाम दिखाई देता है। सोने की चैन, तिलक, छत्र आदि आप प्रतिवर्ष समर्पित करती रहती हैं। मृदु व्यवहार एवं वाक् चातुर्य के कारण आप अपरिचित लोगों के साथ भी दूध में शक्कर के समान मिल जाती है।
लाला बाबू का जीवन कीचड़ में खिले हुए कमल की भाँति है। यद्यपि संसार में रहते हुए वे पूर्णरूपेण अपने दायित्वों का निर्वाह कर रहे हैं फिर भी सांसारिक क्रियाओं के प्रति आत्मरुचि एवं जुड़ाव नहींवत् है । आपका जीवन स्वार्थ से परे एवं स्वहित से ऊपर उठा हुआ है। अपने निमित्त से दूसरों को कष्ट देना, अपने लिए किसी प्रकार का खर्च करना या करवाना आपको पसंद नहीं है। बहुओं के प्रति आपके हृदय में पितृवत वात्सल्य है। आपकी बहुएँ आप में एक पिता का ही नहीं बल्कि एक देवता का रूप देखती हैं। आप उन्हें लक्ष्मी का रूप मानकर आदर ही नहीं बल्कि बेटियों सा स्नेह एवं आजादी भी देते हैं । आपके जीवन में सदाचार, संपदा एवं सहिष्णुता का अद्भुत संग है । कोलकात्ता के विविध मन्दिर एवं व्यापारिक संस्थाओं के द्वारा वर्षों से आपको पद ग्रहण हेतु आमन्त्रित किया जा रहा है। परंतु आपके मन में उन सभी के प्रति अंश मात्र भी आसक्ति या आकर्षण नहीं है। आप प्रभु पूजा, सामायिक, रात्रि भोजन एवं जमीकंद त्याग आदि नियम से करते हैं।
गत 20 वर्षों से आप पूज्याश्री से जुड़े हुए हैं तथा उन्हीं को अपने आध्यात्मिक विकास में हेतुभूत मानते हैं। शारदा पुत्री साध्वी सौम्यगुणाश्रीजी के