Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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ज्ञान अभिवर्धन के पुण्य लाभार्थी
श्री चन्द्रकुमारजी मुणोत परिवार व्यक्तित्व गुणों का आइना है। सहजता, सरलता, विनम्रता, समर्पण एवं सेवा भावना आदि गुण जिनमें प्रतिबिम्बित होते हैं, उनके व्यक्तित्व में निर्मल आभा दमकती है, मन का कायाकल्प हो जाता है और बुद्धि की धार तेज हो जाती है। वाणी में मधुरता, सरलता, स्पष्टता आ जाती है तथा हृदय पारदर्शी बन जाता है। महर्षि चाणक्य ने कहा है- “गुणों से ही मानव महान बनता है, उच्च सिंहासन पर आसीन होने से नहीं। प्रासाद के उच्च शिखर पर बैठने से कौआ गरूड़ नहीं बन जाता।" गुणवान व्यक्ति ही महानता के पथ पर अग्रसर होता है। सेवा वृत्ति एक ऐसा गुण है जो जीवन में अन्य गुणों का निर्माण करती है जिन्दगी के पलों को सुन्दर एवं सुदृढ़ बनाती है।
कोलकात्ता नगर के ऐसे ही सेवानिष्ठ, संकल्प शक्ति के धनी एवं पद लालसा से रहित श्रावक हैं श्री चन्द्रकुमारजी (लाला बाबू) मुणोत। सम्पूर्ण कोलकाता समाज में आपकी छवि एक शान्त, निष्पक्ष, अल्पभाषी श्रावक के रूप में प्रतिष्ठित है। मूलत: भोपालगढ़ (राजस्थान) निवासी चन्द्रकुमारजी का जन्म सन् 1953 कोलकाता में हुआ। धर्मनिष्ठ श्री मोहनलालजी एवं धर्मपरायणा श्रीमती तेजीदेवी मुणोत का ज्येष्ठ पुत्र लाला के प्रति विशेष वात्सल्य था, क्योंकि माता-पिता के प्रति आपके मन में श्रवण तुल्य भक्ति एवं प्रभु वीर के समान आज्ञाकारिता थी। माता-पिता की इच्छा आपके लिए आदेशवत् होती थी। उनके इंगित इशारों या भावों से ही आप उनके हृदय की बात समझ जाते थे। इसी कारण माता-पिता के हृदय में भी आपके लिए अटूट स्नेह का समंदर लहराता था। Graduation करने के साथ-साथ आपने पिताश्री के व्यापार एवं जिम्मेदारियों को संभालना प्रारंभ कर दिया। किशोर अवस्था की मस्ती एवं अल्हडता को परे रख उम्र से पहले ही आप में परिपक्वता आ गई थी। किशोर अवस्था में ही आपने अपनी बौद्धिक प्रखरता एवं कर्तव्य परायणता का परिचय देना प्रारंभ कर दिया था।