Book Title: Jain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar Author(s): Saumyagunashreeji Publisher: Prachya Vidyapith View full book textPage 9
________________ सज्जन स्वर लहरियाँ इस कृति के माध्यम से विधि-विधान का सम्यक स्वरूप __ सबकी समझ में आ सके जन-जीवन में इनका प्रभाव नव उन्मेष को ला सके पथ अमित होता जन मानस सन्मार्ग को अपना सके आचार पक्ष एक नई दिशा एवं उच्च लक्ष्य को पा सके क्योंकि आज फैल रहा है विलासिता का कलुषित साम्राज्य चिहुं दिशि में बढ़ रही है विपरीत धारणार स्वाध्याय-संत समागम की कमी में अंधानुकरण हो रहा पाशविक वृत्तियों का नैतिक मूल्यों की विस्मृत स्थिति में इन्हीं गूढ़ कलुषिताओं एवं कालिमाओं के निवारणार्थ एक छोटी सी ओस बूंद ..Page Navigation
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