Book Title: Jain Siddhanta Kaumudi Purvardha
Author(s): Ratnachandra Maharaj
Publisher: Nagrajji Nahar Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ g. ல் १ ३ ७ ८ ११ १३ १३ १७ ३० ~ ~ 30 30 ३८ ४४ ४५ ४६ ४६ ४८ ५१ पं० १० १२ १४ ४ २१ १० १५ ..१६ १६ ७ १८ १७ २१ ८ १४ शुद्धि पत्रक अशुद्ध प्रन्थादो श्री महावीम्य ध घृद्धि यावत् marat लुखो मनोनुखार मनोरनुखारो असयुक्त प्रत्वयोरिति वृध्यावोकारे रुमयी: . विहारामि रूभयोः तुभं माला इहिंतो बहुलमि शुद्ध प्रन्थादौ श्री महावीरस्थ घ वृद्धि यावत् aarat लक्खो -मनोरनुस्वार मनोरनुस्वारो असंयुक्त प्रत्यययोरिति वृद्धावकारे रुभयो: विहरामि रुभयोः तुन्भं माला + इहिंतो बहुलंभि

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77