Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 4
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 16
________________ बनशिलालस-भग्रह इस गणके बाहुबली, गुमचन्द्र, मोनिदेव एव माघनन्टि उन चार आत्रानोंका वर्णन है - इनमे परम्पर सम्बन्ध बताया नहीं है। दूसरे काम १३वी मदीमें इस गणके एक मन्दिरका उलग है तथा तीगर लपम इसी समयकी एक जिनमूर्तिका उल्लेग्न है।' इसी मघके कारेयगणका उरलेत १२वी मदीय पूर्वाकलाप (क्र० २०९) में है। मुल्लभट्टारक तथा जिनदवपि ये हम गणके आचार्य पांच लेसोमें यापनीय मघका उरलेप किमी गण या गच्छक बिना ही प्राप्त होता है (क्र० १४३,२९८-३००,३८४ )। इनमें पहला ला मन् १०६० का है तथा इससे जयकौति - नागचन्द्र - कनकमक्ति म गुम्परम्पराका पता चलता है। अगले दो लेन १२वी मढीके है तथा इनमें मुनिचन्द्र एव उनके शिष्य पात्यकीतिके ममाधिमरणका उरलेप है। अन्तिम लेसमे १३वी मदीमें कौति आचार्यका उल्लेख्य है। इस तरह प्रस्तुत मग्रहसे यापनीय मघका अस्तित्व छठी मदीमे तेरहवीं सदी तक प्रमाणित होता है। (आ) मलसधप्रस्तुत मग्रहम मूलमपके अन्तर्गत सेनगण, देशी गण, भूरस्थगण, घलगारगण ( बलात्कार गण) क्राणूरगण था निगमा . पहले मप्रहमें इस गणका उल्लेख मन् १८० में आहे (२० १६०)। २. पहले मग्राम इम गणक टी लस सन् ८७७ तथा दसवीं मढी पूर्वार्धक है (३० १३०,१२)। ६. पहले सग्रहम यापनीय मघ तीन और गणोका उरलेस है - कनकोपलरम्भून घृक्षमुल गण, श्रीमूलमूलगण तथा कोटिमडव गण(तीसरा भाग-प्रस्तावना पृ. २७-२९)।

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