Book Title: Jain Satyaprakash 1938 02 SrNo 31
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [२४४] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [१५३ __ अर्थ-दुर्गतिना भीरु कोई पण साधु जो दुध वगेरे विगईओने अथवा खीर वगेरे विकृतिगत वस्तुने वापरे तो ते विगईओ तेने बलात्कारे दुर्गतिमां दोरी जाय छे. कारण ? आ विगईओ छे ते चित्तनी विकृतिने करवाना स्वभाववाळी छे । प्रस्तुतमां अनुपयोगी विगईओनां नाम शा माटे ? मध, माखण, मांस अने मदिरा तो मुनिजनने दीक्षादिनथी त्याज्य ज होय छे. फक्त दुध, दहिं, घी, गोळ अने तेल कल्प्य छे, तेनो ज उपर्युक्त व्यक्तिने निषेध करवो उचित हतो, आम नहि करतां मध, माखण, मांस अने मदिरानां पण नामो शा माटे गणाव्यां? __ यद्यपि मुनिराजने अंगे दुध, दहिं, घी, गोळ अने तेल ज निषेधवानी आवश्यकता छे, छतां पण आ कल्प्य विगईओ जेम विकृतिने करनारी छे तेम मध, माखण, मांस अने मदिरा रूप अकल्प्य विगईओ पण विकृति करनार होवाथी विकृतिभावनी साम्यताने लईने विगइना दंडक पाठने अखंडित राखवा दुध, दहिं वगेरे कल्प्य विगईओनी साथे महाविगई जे मध, माखण, मांस अने मदिरा तेनां पण नामो गणाव्यां छ । प्रस्तुतमां उपयोग न होय छतां पण दण्डक पाठने अखंडित राखवा नामो गणाववामां आवे छे. आ ज कल्पसूत्रमा परमात्मा महावीर देवर्नु समितिगर्भित वर्णन करतां नीचे प्रमाणे जणावे छे "ईरियासमिए भासासमिए एसणासमिए आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिए उच्चारपासवणखेलसिंघाणजल्लपारिट्ठावणियासमिए ।” आ पांच समितिमांनी अन्त्य बे समितिने माटे टीकाकार महाराज नीचे प्रमाणे जणावे छे___“ एतच्च अन्त्यसमितिद्वयं भगवतो भाण्डसिंघानाद्यसंभवेऽपि नामखण्डनार्थमित्थमुक्तम् । " अर्थ-जो के परमात्माने भाजन तथा नासिका मेल वगेरेनो संभव नथी छतां पण समितिना दण्डक पाठने अखंडित राखवा माटे छेली बे समितिनां नाम गणाव्यां छे । सारांश ए छे के-मध, माखण, मांस अने मदिरा तो दीक्षादिनथी त्याज्य ज छे, अने विकृतिभावनी साम्यताने लइने विकृतिनो दंडक पाठ अखंडित रासवा पुरता मध, माखण, मांस अने मदिरानां नाम आपेल होवाथी उपर्युक्त पाठनो फलितार्थ एवो थशे के मांस, मदिरादिकना त्यागी उपर्युक्त मुनिने वारंवार दुध, दही, घी, गोळ अने तेल खावां कल्पे नहि, परंतु उपर्युक्त मुनिने वारंवार नव विगइओ खावी कल्पे नहि एवो अर्थ न करवो । For Private And Personal Use Only

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