Book Title: Jain Satyaprakash 1938 02 SrNo 31
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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[२४८] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[१३ कोई व्यक्ति विशेषने उत्सर्गमार्गथी संयमगुण अबाधित न रही शकतो होय अने आपवादिक मार्गथी रही शकतो होय ? आवा विकट प्रसंगमां संयमगुणने लक्ष्यमा राखीने आपवादिक मार्ग आचरे तो संयमगुणना निर्वाह साथे आराधकता ज छे, कारण के भावनी निर्मळता अने संयमगुणनी अबाध्यता ए तेर्नु अवन्ध्य लक्ष्य छे. आराधकता अने विराधकतानी मुद्रा भावनाने आधीन छे. आ वात दिगम्बर शास्त्रोमां वर्णित शिवकुमारादिना दृष्टान्तथी पण समजी शकाय तेवी छे.
प्रस्तुतमां आशाम्बर लेखकने पुछवामां आवे छे तमारा दिगम्बर शास्त्रमा मांस-त्यागनो उत्सर्ग मार्ग 'राजमार्ग' छे या नहि ? जो छे तो तेनो अपवाद जरूर मानवो जोइए. कारण ? अपवाद विनानो उत्सर्ग होई शकतो नथी. आ वातनो इन्कार आशाम्बर लेखक करी शके तेम नथी, कारण ? दिगम्बर ग्रन्थकारोए आ वातने विना संकोचे स्वीकारी छे, जुओ दिगम्बर ग्रन्थ प्रवचनसारवृत्ति
“ तन्न श्रेयान अपवादनिरपेक्ष उत्सर्ग इति परस्परं सापेक्षोत्सर्गापवादरूपत्वात् स्याद्वादस्य ।" ।
भावार्थ-अपवाद सिवायनो उत्सर्ग कल्याणकारी नथी, कारण के परस्पर अपेक्षा राखता जे उत्सर्ग अने अपवाद तन्मय स्याद्वाद छे. ___आ उपरथी शुं जणावे छे के अपवाद निरपेक्ष उत्सर्गने माननार जैनदर्शनना मूलभूत जे स्थाद्वाद तेना पर कुठाराघात करे छे । आ आशाम्बर लेखके पोताना दर्शनना ग्रन्थो जोवानो पण पूरो अवकाश लीधो होय तेम जणातुं नथी. कदाच लीधो होय तो बुद्धिए स्थान आप्यु जणातुं नथी. दिगम्बर शास्त्रे, कारणे अनेक आपवादिक वस्तुने स्वीकारी छे. जुओ
१ वर्षाऋतुना कालमां महीतल जीवाकूल होवा छतां कारणे भार दई दईने विहारो बताव्या छ।
२ गच्छ अने पुस्तकनी वृद्धि अर्थे खुद आचार्य अयाचित द्रव्यने उठावी लेवू ।
३ लोढानां उपकरणो मुनिए काममा लेवां । ४ संथारो काममा लेवो। ५ विष्ठावाळां जोडां करी नास्तिकना मोढा उपर मारवा । ६ तट्टीसादरना लुगडां पहेरी गोचरी जq । ७ मांदा साधु माटे पात्रा राखवां अने गोचरी बीजेथी लावी आपवी। ८ मांसाहारी अने गीधपक्षीनां पीछा राखवा । ९ सावधांशने वोरीने पण शासननी प्रभावना करवी ।
आ रीते दिगम्बर दर्शने जनेक अपवादोने स्थान आपेल छे. प्रसंगोपात्त पटलुं तो जरूर कहीशु के दिगम्बर आगम अर्वाचीन होवाथी उत्सर्गाप
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