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प्रवास-गीतिका-त्रय संशोधक-महोपाध्याय श्री यतीन्द्रविजयजी महाराज कुकशी-ज्ञानमंदिर के हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची तैयार करते, उसके छुटक पत्रों के बिंडल में से विक्रम संवत् १४२७ के साल का श्रीजयानन्द नामक मुनि के हाथ का लिखा हुआ एक पत्र उपलब्ध हुआ। उसमें नेमाडप्रवासगीतिका, मालवप्रवासगीतिका और बागड़प्रवासगीतिका; ये तीन गीतिकाएँ लिखी हुई हैं। प्रत्येक गीतिका युगल के नीचे जूने समय की गुजराती भाषा में मतलब भी दिया हुआ है। ये गीतिकाए उस समय के जिनालयों और उनके उपासकों की संख्या जानने के लिये बड़े महत्त्व और जैन इतिहास के लिये अति अगत्य की वस्तु है। पाठकों के जानने के लिये यहाँ ये गीतिकाएँ ज्यों की त्यां उद्धृत कर दी जाती हैं
[१]
नेमाड-प्रवास-गीतिका मांडवनगोवरि सगसया, पंच ताराउर वरा । विस-इग सिंगारि-तारण, नंदुरी द्वादस परा ।। हत्थिनी सग लखमणीउर, इक्क-सय सुह जिणहरा । भेटिया अणूवजणवए, मुणिजयाणंद पवरा ॥१॥ लक्खतिय सहस-बि पणसय, पण सहस्स सगसया। सय-इगर्विस दुसहसि सयल, दुन्नि सहस कणयमया ॥ गामगामि भत्तिपरायण, धम्ममम्म-सुजाणगा ।
मुणिजयाणंद निरक्खिया, सबल समणोवासगा ॥२॥ -गुरु साथई नेमाड़नी यात्रा करिवा गया, मंउपाचलिं ७००, तारापुरई ५, श्रृंगार अनई तारणपुरई २१, नांदुरीइं १२, हस्तिनीपत्तनइं ७, अनई लक्ष्मणपुरई १०१ जिनवरना चइत्य जुहारिया. तिमिज मंडपाचलिई त्रिण लाखि, तारापुरई ५०००, श्रृंगारपुरई ७००, नांदुरीई २१००, हाथिनपत्तनई २००० अनई लक्ष्मणपुरइं २०० इम गाम-गामिं ठाम-ठामइं धण कण कनकवंता भक्तिवंता धर्ममर्मना जाण सबल श्रमणोपासिकना गृह जोइया; आत्मा घणी प्रसन्न थइ छई. सं० १४२७ना मगसरई यात्रा कीधई छई लि. जयानंदमुनिना हस्तिनीपत्तने, इति नीमाड़प्रवासगीतिका.
[२]
मालव-प्रवास-गीतिका भोजऊड-कुंदनउरि दुग, इंगलि णव जिणालया। विंस अवंति पण पडासलि, कुक्कडेसरिग समया ।
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