Book Title: Jain Satyaprakash 1938 02 SrNo 31
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [२७०] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [१३ ४४ श्रीजगञ्चंद्रसूरि-आपने कई दिगम्बर आचार्योंको शास्त्रार्थमें पराजित किया है। आप बडे त्यागी व तपस्वी थे। आपकी तपस्या के प्रभावसे आपको “महातपस्वी' की उपाधि मिली थी। अतएव आपकी शिष्यपरंपरा की “तपगच्छ" ऐसी ख्याति हुई है। तपगच्छ यह निर्गन्थ गच्छ का छठा नाम है। . ये सब प्राभाविक श्वेताम्बर आचार्य हैं, दिगम्बर समाज पर भी इनका प्रभाव अच्छा पड़ा है। ___ आ० सोमप्रभम्ररिके सिन्दूरप्रकरण याने सूक्तमुक्तावली ग्रंथको दिगम्बर समाजने ज्योंका त्योंही अपना लिया है। दिगम्बर विद्वानोंने सूक्तमुक्तावली के पादपूर्ति ग्रन्थ बनाये हैं और भाषा कवित्त बनाया हैं।२ इसके अलावा दिगम्बर समाजमें इस ग्रन्थ की ऐसी प्रतिष्ठा है कि इसके एक श्लोकके आधारपर दि० समाजके तेरापंथी और वीशपंथीके भेद कायम हुए माने जाते हैं। वह श्लोक इस प्रकार है भक्तिं तीर्थकरे गुरौ जिनमते संघे च हिंसाऽनृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहाधुपरमं क्रोधाधरीणां जय ।। सौजन्यं गुणिसंगमिन्द्रियदमं दानं तपो भावनां । वैराग्यं च कुरुश्व निवृतिपदे यद्यस्ति गंतुं मनः ॥ सि० ८॥ जिन पूजहिं गुरु नमहिं, जिनमतबैन वखानहि । संघभक्तिआदरहिं, जीवहिंसा नहि जांनहि ॥ जूठ अदत्त कुशील त्यागि, परिगहिपरमांनहिं । क्रोध मान छल लोभ जीति, सजनठिति ठानहि ॥ गुणसंग करहिं इंद्रीय दमहिं । देहि दान तप भाव जुत्त ॥ गहि मन विराग इंहिविधि रहहि । ते जगमें जीवनमुक्त ॥८॥ छप्पय ॥ कहा जाता है कि-इन २० बातों को माननेवाले “वोशपंथी" और इनमेंसे १३ बातों को माननेवाले " तेरापंथी” हैं। इसके ११ वे श्लोकमें २ सिन्दूरप्रकरणकी भाषा कवित्तका मंगलाचरण इस प्रकार है शोभित तपगजराज, सीस सांदूर पूर छवि । बोधदिवसआरंभ, किरनकारण उद्योत रवि ॥ मंगल तरूपल्लव, कषायकंतार हुताशन । बहुगुणरत्ननिधान, मुक्तिकमला कमलासन ॥ इह विधि अनेक उपमा सहित । अरुन वरन संतापहर ।। जिनराय पाय नख ज्योतिभर । नमत बनारसी जोरि कर ॥१॥ छप्पय ।। -बनारसीविलास गुटको, पृ. ११६, पु० नं० ५७ । -श्रीदिगम्बर जैनपंचायत शिखरबन्द मन्दिर, चौकडा, सरधना। For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44