Book Title: Jain Satyaprakash 1936 07 SrNo 13
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir DECEBHBHEELEBRIEBHECHERBERE BHBERRBA तारंगतीर्थाधीश श्री अजितनाथ-स्तोत्रम् कर्ता--आचार्य महाराज श्रीविजयपद्ममूरिजी EEEEEEEEEEEEEEEEEEEJRILEERIEETERELETEJEERIER LEEEEEEEE HHHHH ॥ आर्यावृत्तम् ॥ वंदित्तुं वरतित्थं पयपोम्म पुज्जणेमिमरीणं ॥ सिरिअजियणाहथुत्तं रएमि अवभावणुच्छेयं ॥ १ ॥ ॥ शार्दूलविकीडितवृत्तम् ॥ झाणा जस्स विसिट्ठसुक्खनिलयं पावंति भब्वा नरा। सब्भव्वत्तविवागहेउणमणं पूया महाणंदया॥ सब्भावुभवकारणं य सरणं चित्तत्थिरत्ताणुयं । तं वंदे जियसत्तुरायतणयं तारंगतित्थेसरं ॥ २ ॥ दिक्खा छ तवेण जेण गहिया सालवस्वरुकावस्सहे। नहादसदोस मिट्टकमलासंदाणकप्पमं ॥ लोयालोयपरूवगं णियगुणारामे रयं सिद्धियं । तं वंदे जियसत्तुरायतणयं तारंगतित्थेसरं ॥ ३ ॥ देविंदामरवंतराइमहियं सद्धम्मवीयंवुयं । कारुण्णंबुहिपुज्जपायकमलं तिण्णं भवा तारयं ।। संसारद्धिणिगज्जणद्दियनराणं सिद्धणिज्जामयं । तं वंदे जियसत्तुरायतणयं तारंगतित्थेसरं ॥४॥ मिच्छत्तायलवज्जकंतवयणं विस्संबुए मृरियं । दिव्वाणंतगुणोहसंगइगयं सोहग्गलच्छीमयं ॥ जोगक्षेमविहाणदकरकमउडं साहावियाणंदयं । तं वंदे जियसत्तुरायतणयं तारंगतित्थेसरं ॥ ५ ॥ भावुल्लासणिवंधणं जियरित्रं झाणंतरीए खणे। संपत्तामलकेवलं कुचलयप्पोल्लासभाणुप्पहं ॥ For Private And Personal Use Only

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