Book Title: Jain Satyaprakash 1936 07 SrNo 13
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AAAAAAAAAAAAAAYannA સમીક્ષાશ્વમાવિકરણ ____ हवे आपणे बीजी बाबत पर आवीए। तथा चन्द्रसमान केवली भगवन्तोना विरहकालमां बीजी बाबतमा लेखकनु जणावq एवं हतुं दीपकसमान आचार्य भगवन्तो सर्वज्ञदर्शित के आचार्य पोते बे वार आहार करे छे। भावो जगत्नी आगळ प्रदर्शित करे छे एटलं अर्थात् उपर्युक्त कल्पसूत्रनो पाठ आचार्यने ज नहि परन्तु तेओ शासनना राजा समान बे वार भोजन करवानुं प्रतिपादन करे छ। छे । जेम समग्र राज्यनी धुरा राजा पर आ बाबतमा लेखकने पूछवामां आवे छे के निर्भर होय छे तेम धर्मसाम्राज्यनी धुरा पण शुं आ वचनो विधिरूप कहो छो आपवादिक! आचार्य भगवन्तो पर निर्भर होय छे । विधिरूप जो कहेता हो तो ते व्याजबी इतर दर्शनना आक्रमणथी शासनने केम नथी। कारण के तेने नहि पालवामां अविचल राखवू, वादीओने निरुत्तर करी अर्थात् बे वार खावामा नहि आवे तो आज्ञा- परम कल्याणकारी वीतराग दर्शन केम विश्वभङ्गादि दोष लागशे अने आ वात व्याजबी व्यापी बनाव, परिचयमा आवता राजा नथी। आचार्य भगवन्तोनी अनेक प्रकारनी महाराजा अने विद्वान वर्गने प्रतिभाकौशल्यथी तपस्यानु शास्त्रमा वर्णन छ :----जेम स्वपरसमयना भावो युक्तिपुरस्सर समजावीने जंगच्चन्द्रसूरीश्वरजी महाराजे जावजीव सुधी वीतरागशासनरसिक केम 'बनाववा, चतुर्विध आंबेल कर्या हता, जेने लइने तेमना गुणथी संधनी धार्मिक व्यवस्था साचववी, मुनिओने आकर्षाएला मेदपाटाधीशे "महातपा” एवं सूत्रार्थनी वाचना आपवी, सारणा-वारणादिकथी बिरुद आप्यु हतुं । आपवादिक वचनो छे गच्छनी संभाळ राखवी वगेरे अनेक कार्यनो एम जो कहेवामां आवतुं होय तो तमाम बोजो आचार्य भगवन्तोना शिर पर होय छे । आचार्यने माटे हमेशनी आ वस्तु नथी परन्तु आ दुर्धर बोजाना परिश्रमने लईने आचार्य कारणविशेषे आचार्यविशेषने आश्रीने छ । अर्थात् भगवन्तोनी शारीरिक अने मानसिक शक्ति जे आचार्य भगवन्तोने एक वखत वापरवाथी पर आघात पहेांचवानो सम्भव छे माटे ते निर्वाह न चालतो होय अने शासननां कार्य शक्तिने टकावीने शासनकार्य बजाववा माटे बे सीदातां होय तेओ तेवा कार्यप्रसङ्गमां बे वार आहार बतावेल छे । छतां पण कोई वार पण वापरे, अने जे आचार्य भगवन्तो विशिष्ट संधयणवाळा होय अथवा कशा विशिष्ट शरीरेना बंधारणवाळा होय अने एक प्रकारनो बोजो न होय तो एक वारथी चलावे । वखत आहारथी निर्वाह चलावी शकवा साथे आ प्रमाणे बे वार वापरवामां शुं शुं ध्येय शासनकार्यो अम्लानाभवे करी शकता होय समायेल छे तेनो विचार कर्या सिवाय जेम तेओ एक वार आहार करे। आवे तेम दीधे राखवू तेनो कशोय अर्थ नथी। ... सूर्यसमान तीर्थङ्कर देवोना विरह कालमां . आचार्य शब्दथी जेम पश्चपरमेष्ठीमांना For Private And Personal Use Only

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