Book Title: Jain Satyaprakash 1936 07 SrNo 13
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ....... १. શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ तृतीयपदवी, तीर्थक्कर सिवायना, आचार्य त्रीजी बाबतमां लेखके जणाव्यु हतुं के लेवाथ छे, तेम पञ्चपरमेष्ठी वगेरमां कोईक आचार्य अन्य साधुओने एक ज. बार खान स्थलमा आचार्य शब्दथी तीर्थकरो पण लेवाय दे छ । आना प्रत्युत्तरमा जणाक्वानुं जे अ छे, जेने माटे प्रस्तुत कल्पसूत्रना वचनो ते कोइ सामान्य आयरियग्गहणेणं तित्थयरो तत्थ होई गहिओ उ। आचार्यना नथी परन्तु श्रतकेबली, चतुर्दम्पूर्वी किंवा न होयायरिओ आयारं उवदिसंतो उ॥१॥ भदबाहुस्वामी महाराजमा द्वादशालीमांची [ आचायग्रहणेण तीर्थकरस्तत्र भवति ग्रहीतस्तु। उद्धरेलां छे अने आ वचनो पण केवल किंवा न भवेदाचार्य आचारमुपदिशन्तु ॥१॥] आचार्य महाराजने जबे बार आहारनी छुट स्वयमाचारकरणं परेषामप्याचारोपदेशन- आपे छे अने बीजाने नहि तेम नथी, पाल्तु मित्याचार्यशब्दप्रवृत्तिनिमित्तम् , ततस्तीर्थकरो उपाध्याय, तपस्वी, बीमार, क्षुल्लक, क्षुल्लिका ऽपि आचार्यो भवति । अत्र निदर्शनम् : अने बेयावञ्च करनारमे पण ते ज सेते छुट स्कन्देन भगवान् गौतमः पृष्टः केन्दं आपेछ। जेने माटे प्रथम अर्थसहित पाह तव शिष्टम् , स प्रत्याह-धर्माचार्येणेति। .. पण अमो बतावी आव्या छीए । छतां पपा सारांश आचार्य, ग्रहण करवाथी तेमां लेखक जणावे छे के आचार्य बीजाने एक तीर्थकरनुं पण ग्रहण थाय छे, आचास्नो जवार खाया दे छे ते नवाईभर्यु छ । वस्तुतः उपदेश करता एवा तीर्थकर भगवन्तो शुं सामान्य शेख मुनिमण्डलने एक वार भोजन आचार्य न कहेवाय ? अर्थात् कहेवाय छे। शास्त्रप्रतिपादित छ । कारण के एक बार पोते आचार- परिपालन करवू अने बीजाने यापरवाथी निर्वाहनो सम्भव छ । सो पण आचारनो उपदेश आपवो ते आचार्यपदनुं जेने एक वार वापरवाथी निर्वाह न थतो प्रवृत्तिनिमित्त छे मारे तीर्थङ्कर भगवान् पण होय तेने बीजी वार वापरवानी पण झुट छ । आचार्य कहेवाय छ। आ ज कारणथी स्कन्दे कदाच अहीयो कोई एम प्रश्न करे के गोतमत्वामी भगवान्ने पूछ्यु के आ वात एम जो छे तो पछी आ कल्पसूत्रमा बे वार तमने कोणे कही छे त्यारे गौतम प्रभुए आहारनो छुटमां अमुक ज नामो केम जवाब आप्यो के मारा धर्माचार्ये कही छे। अणाव्यां। आना जवाबमां समजवान ने आ ठेकाणे पण तीर्थङ्करने माटे धर्माचार्य संयमपरिपालना अने शासनसेवा वगेरेने शब्द वापरेल छ। प्रस्तुतमां गमे ते रीते लक्ष्यमां राखीने जेने एक बार भोजनथी लेवामां आवे तो पण वांधो नथी कारण के निर्वाहनो असम्भव छे तेनुं स्वरूप सूचन आपवादिक वचन मानेल होवाथी जेने निर्वाह करवो माटे विशेष नामो आप्यां छ । आ नहि चाली शकतो होय तेने माटे लागु पडशे। सिवायमां एक वारथी निर्वाहनो सम्भव छे हवे आपणे त्रीजी बाबत पर आवीए। माटे आपेल नथी। (अपूर्ण) For Private And Personal Use Only

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