Book Title: Jain Satyaprakash 1936 07 SrNo 13
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૧૯૯૨ દિગમ્બર શાસ્ત્ર કેસે બને ? यहां कुन्दकुन्दाचार्य को मौर्य-चन्द्रगुप्त-मुनि के शिष्य बताये हैं, किन्तु मौर्य चन्द्रगुप्त ने जैन दीक्षा हो नहीं ली जैसा कि हम आगे लिख चुके हैं। इसके अतिरिक्त और और स्थानों में आ० कुन्दकुन्द को द्वीतीय भद्रबाहु के शिष्य माने हैं, अतः इन लेखों के अनुसार आपको द्वितीय भद्रबाहुस्वामी के शिष्य चन्द्रगुप्त (गुप्तिगुप्त ) सूरि के शिष्य मानना चाहिये। २-भगवान् महावीरस्वामी के शासन में आ० कुन्दकुन्द हुए, जैसे---- श्रीमतो वर्द्धमानस्य, वर्द्धमानस्य शासने । श्रीकोण्डकुन्दनामाऽभून्मूलसंघाग्रणी गणी ॥ -श्र० बे०शि० नं० ५५, श्लोक ३, शक सं० १०२२ -श्र० बे० शि० ० ४९२, श्लोक ११, शक सं० १.१५ चतुर्थपादे----चतुरंगुलचरणः ॥ -श्र० बे० शि० नं. १३९, श्लो० २, शक सं० १०४१ ३-दि० आचार्य वीर की परंपरा में आ० कुन्दकुन्द हुए, जैसे -श्र० बे०शि० नं. १०८ श्लोक-१३. शक सं० १३२० ४-श्री गौतमस्वामी की परंपरा में नन्दीगण, जिसकी व्यवस्था आचार्य अर्हबली या आ० अकलंक ने की है उस में आ० कुन्दकुन्द हुए। श्री पद्मनंदीत्यनवधनामा, ह्याचार्यशब्दोत्तरकोण्डकुन्दः । द्वितीयमासीदभिधानमुद्यच्चरित्रसंजातसुचारणद्धिः ॥ -श्रबे०शि०नं० ४२, ४३, ४७, ५०, श्लोक-४, - शक संवत् १०९९, १०४५,१०३७, १९३८ ५-द्वितीय भद्रबाहु-शिष्य गुप्तिगुप्त-शिष्य माधनन्दी-शिष्य जिनचंद्र के शिष्य आ० कुन्दकुन्द हुए। -~-नंदीसंघ की पट्टावली ६-आचार्य कुन्दकुन्द द्वितीय भद्रबाहु के शिष्य हैं । -" स्वामी समंतभद्र" (हिन्दी) ७--आ० अर्हबली-माधनन्दि-धरसेन-पुष्पदंत-परंपरागत आ० भूतबली के शिष्य आ० कुन्दकुन्द हुए। . -"स्वामीसमंतभद्र पृष्ट-१३, १६९, १६४, १८५, १८८ ८-प्रतिबोधचिन्तामणि में उल्लेख है कि आ० कुन्दकुन्द अनन्तकीर्ति के शिष्य थे। -जैन गज़ट, १४-१५ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52