Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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इस प्रकार १०० अधिकरण इस 'वैमानिक प्रकरण' की हस्तलिखित पुस्तिका में दिये गये हैं। पाठक इस पर तनिक भी ध्यान देंगे तो देखेंगे कि जो विषय या विद्या इन अधिकरणों में दी गई है वह आजकल की वैज्ञानिक विद्या से कम महत्त्व को नहीं है।
उपलब्ध चार सूत्र:
इन चार सूत्रों के साथ बोधानन्द की वृत्ति के अतिरिक्त कुछ अन्य खेटकों के नाम तथा विचार भी दिये गए हैं।
प्रथम सूत्र है :-"वेगसाम्याद् विमानोऽण्डजानामिति ।"
इस सूत्र द्वारा विमान क्या है इसकी परिभाषा की गई है । बोधानन्द अपनी वृत्ति में कहते हैं कि विमान वह आकाशयान है जो गृध्र आदि पक्षियों के समान वेंग से आकाश में गमन करता है। लल्लाचार्य एक अन्य खेटक में भी यही लक्षण देते हैं। नारायणाचार्य के अनुसार विमान का लक्षण इस प्रकार निर्दिष्ट है --
पृथिव्यप्स्वन्तरिक्षेषु खगवद्वेगतः स्वयम् । यः समर्थो भवेद्गन्तुं स विमान इति स्मृतः ।।
अर्थात् जो विमान पृथिवी, जल तथा अंतरिक, में पक्षी के समान वेग से उड़ सके उसे ही विमान कहा जाता है। अर्थात् उस समय में विमान पृथिवी पर, पानी में तथा वायु (हवा) में तीनों अवस्थाओं में वेग से चलनेवाले होते थे। ऐसा नहीं कि पृथिवी या पानी में गिर कर नष्ट हो जाते थे। विश्वम्भर तथा शंखाचार्य के अनुसार :
देशादेशान्तरं तद्वद् द्वीपाद्वीपान्तरं तथा । लोकाल्लोकान्तरं चापि योऽम्बरे गन्तुं अर्हति,
स विमान इति प्रोक्तः खेटशास्त्रविदांवरैः ।। अर्थात् उस समय जो एक देश से दूसरे देश, एक द्वीप से दूसरे द्वीप तथा एक लोक से दूसरे लोक को आकाश द्वारा उड़कर जा सकता था उसे ही विमान कहा जाता था।
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