Book Title: Jain Paribhashika Shabdakosha
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 9
________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश/भूमिका आत्मा की स्वीकृति अनेक दर्शनों में है। लोकवाद और कर्मवाद का सिद्धान्त भी उन्हें मान्य है किन्तु आत्मा, लोक और कर्म के विषय में जितनी सूक्ष्म स्तरीय मीमांसा और जितने पक्षों पर विचार जैन आचार्यों ने किया है उतना अन्यत्र प्राप्य नहीं है। क्रियावाद का विषय सर्वथा स्वतन्त्र जैसा प्रतीत हो रहा है। इस दृष्टि से जैन पारिभाषिक शब्दकोश के निर्माण की सार्थकता स्वत: सिद्ध है। परिभाषा : विवेचन और विश्लेषण __ पूर्वज आचार्यों ने आगम-साहित्य और आगमतुल्य ग्रन्थों के अध्ययन के लिए अनेक विधाओं में नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि आदि की रचना की है। उससे परिभाषा को समझने की सुविधा प्राप्त हुई है। एक शब्द पर अनेक व्याख्याकारों ने अनेक प्रकार की परिभाषाएं की हैं। इससे कहीं-कहीं सुविधा और कहीं-कहीं जटिलता भी हुई है। इसे जैन लक्षणावली के अध्ययन से जाना जा सकता है। कहीं-कहीं हमने परिभाषा की यथार्थता के लिए व्याख्या-- ग्रन्थों से भिन्न ग्रन्थों का उपयोग किया है। उदाहरण के लिए 'स्थूल' शब्द की परिभाषा को प्रस्तुत किया जा सकता है। अणुव्रत के साथ 'स्थूल' शब्द का अर्थ 'बड़ा' नहीं है। अभयदेवसूरि ने उपासकदशा की वृत्ति में स्थूल का तात्पर्याथत्तर्स किया है। हरिभद्रसूरि ने भी आवश्यक की वृत्ति में स्थूल का अर्थ बड़ा किया है। किन्तु वास्तव में स्थूल शब्द का प्रयोग देश-अपूर्ण अथवा असर्व के रूप में किया गया है। उमास्वाति ने अणुव्रत और महाव्रत के लिए कमश: देश और सर्व शब्द का प्रयोग किया है ।२५ श्रावक देश का प्रत्याख्यान करता है, देश का प्रत्याख्यान नहीं करता। इस उद्धरण से स्थूल शब्द का प्रयोग 'देश' के अर्थ में है, इस तथ्य की पुष्टि भगवती सूत्र से होती है।२६ पाप की परिभाषा प्राचीन ग्रन्थों में मिलती है किन्तु पापस्थान' शब्द की परिभाषा हमने जयाचार्य साहित्य से ली है।३७ प्रविधि १. परिभाषा के विषय में हमारा दृष्टिकोण यह है कि परिभाषा के निर्माण का अधिकार प्राचीन विद्वानों की तरह आज के विद्वानों का भी हो सकता है। इस चिन्तन के आधार पर हमने अनेक स्थलों पर नई परिभाषाओं का सृजन किया है। २. ऐसे पारिभाषिक कोशों के प्रणयन में यह अत्यन्त आवश्यक हो जाता है कि परस्पर सम्बद्ध शब्दों के 'अन्योन्यसंदर्भ' (cross reference) का उल्लेख किया जाए जिससे पाठक स्पष्टता से पुनः शब्दों को हृदयङ्गम कर सके। इस दृष्टि से जहां-जहां आवश्यक लगा, वहां-वहां उस शब्द के नीचे (द्र....) द्वारा अन्योन्य संदर्भ का उल्लेख कर दिया गया है। ३. चित्रों के द्वारा जहां प्रस्तुत व्याख्या को सरलता से समझाया जा सकता है, वहां चित्र भी साथ में या अन्त में दिए गए हैं। ४. पारिभाषिक शब्दकोश के निर्माण की कार्यसूची में पहला स्थान शब्द-चयन का है। शब्दों के चयन का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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