Book Title: Jain Kriya Kosh
Author(s): Daulatram Pandit
Publisher: ZZZ Unknown
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११
त्रेपण क्रिया ।
अब सुनि चून तनी मरजाद, भाषै श्रीगुरु जो व्यविवाद | शीतकाल में सातहि दिना, भीषममें दिन पांचहिं गिना ॥ बरषारितु माहीं दिन तीन, आगे संघाणा गणलीन । मरजादा बीतें पकवान, सो नहिं भक्ष कहें भगवान ।। ताहि भखें जु असूत्री लोक, पावें दुरगतिमें दुख-शोक । मर्यादाकी विधि सुनि धीर, जो भाषी गौतम प्रति वीर ॥ जामें अन्न जलादिक नाहिं, कछु सरदा जामाही नाहि । बूरा और बतासा व्यादि, बहुरि गिदौडादिक जु अनादि ॥११०॥ ताकी मर्यादा दिन तीम, शीतकालमें भाषी ईश । भीषम पंदरा वर्षा आठ, यह धारौ जिनवाणी पाठ ॥ पर जो अन्नतणों पकवान, जलको लेश जु माई जान । - आठ पहर मरजादा जाम, भार्षे श्रीगुरु धर्म प्रकाश || अल-बरजित जो चूनहिं तनों, घृत-मीठी मिलिकं जो बनों । ताकी चून समानहिं जनि, मरजादा जिन आज्ञा मानि ॥ भुजिहा बड़ा कचौरी पुवा, मालपुवा घृत- तेलहिं हुवा । इत्यादिक है अनरहु जेह, लुचई सीरा पूरी एह ॥ ते सब गिना रसोई समा, यह उपदेश कहे पति रमा । दारि भात कड़ही तरकारि, खिचड़ी आदि समस्त विचारि ॥ दोय पहर इनकी मरजाद, आगें श्रीगुरु कहें अखाद ।
ई नर संधारक त्यागि, ल्यूं भी खाय सवादहिं लागि || केरी नींबू आदि उकालि, नाना विधि सामग्री घालि ।
सरस्यूँ केरी तेल तपाय तामें तलें सकल समुदाय ॥ जिह्वालंपट बहु दिन राख, स्वाय तिके मतिमन्द जु भाख ।

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