Book Title: Jain Hiteshi 1920 Ank 04 05 Author(s): Nathuram Premi Publisher: Jain Granthratna Karyalay View full book textPage 4
________________ जैनहितैषी [भाग १४ अनादि अनन्त हैं जिनके अनेक प्रकारके नवीन होना मानना पड़ता है। आगे चलकर हम" नवीन रूप होते जानेके द्वारा ही यह विचित्र वस्तुस्वभावकी खोज करते हैं तो उनके स्वभाव संसार चल रहा है। भी अनादि और अनन्त ही पाते हैं । अर्थात्, ___ इस प्रकार जीव और अजीवरूप संसारकी अग्निका जो स्वभाव जलाने, उष्णता पहुँचाने और सभी वस्तुओंकी नित्यता सिद्ध हो जाने पर प्रकाश करनेका अब है वह उसमें सदासे ही अब केवल यह बात निर्णय करनेके योग्य है और सदा तक रहेगा । इसी प्रकार लोहे, रह जाती है कि संसारके ये सब पदार्थ किस पीतल, सोने, चाँदी, नमक, सुहागा और प्रकारसे नवीन नवीन रूप धारण करते हैं, फिटकरी आदि सभी पदार्थोके गुण और स्वभाव अर्थात् इन अनादि वस्तुओंके द्वारा इस विचित्र भी सदासे ही चले आते हैं। इनके ये गुण संसारका कारखाना किस तरह चल रहा और स्वभाव अटल होनेके कारण ही मनुष्य है। इस बातके निश्चय करनेके वास्ते भी मनुष्य इनके स्वाभावोंकी खोज करता है और फिर सिवाय इसके और कुछ नहीं कर सकता कि उन खोजे हुए उनके स्वभावोंके द्वारा उनसे. वह संसारके ढाँचेकी जाँच करे और उसकी नाना प्रकारके काम लेता है और बेखटके कार्यप्रणालीके नियमों को ढूंढ निकाले। परन्त उनको काममें लाता है। यदि वस्तुओंके ये इस प्रकारकी खोजमें लगते ही सबसे पहली गुण और स्वभाव अटल न होते-बदलते रहा बात मनुष्यको यह मालूम होती है कि मनुष्य करते-तो मनुष्यको किसी वस्तुके. छूने और मनुष्यसे ही पैदा होता अनादि कालसे चला उसके पास जाने तकका भी साहस न होता; आता है । गाय, भैंस, घोड़ा, गधा, भेड़, बकरी, क्यों कि तब तो यही खटका बना रहता कि कुत्ता, बिल्ली, शेर, भेड़िया, चील, कबूतर, न जाने आज इस वस्तुका क्या स्वभाव हो कौआ, और चिड़िया आदि पशु पक्षियोंकी गया हो, और इसके छूनेसे न जाने क्या फल बाबत भी जो अपने मा-बापसे ही पैदा हुए पैदा हो । परन्तु संसारमें तो यही दिखाई दे रहा देखे जाते हैं, यह मानना पड़ता है कि वे भी है कि वस्तुका जो स्वभाव आज है वही कल था नसल दर नसल सदासे ही चले आते हैं और और वही आगामी कलको रहेगा । इसी कारण बिना माँ-बापके पैदा नहीं किये जा सकते वह वस्तुओंके स्वभावके विषयमें अपने और हैं । गेहूँ, चना, मक्का, बाजरा, उड़द, मूंग, अपनेसे पहलेके लोगोंके अनुभव पर पूरा भरोसा और आम अमरूद आदि उन पौधोंकी बाबत करता है और सभी वस्तुओंके स्वभावको अटल. भी, जो अपने पौधेके बीज, जड़ शाखा आदिसे मानता है । इससे साफ साफ यही नतीजा ही पैदा होते हैं, यह मानना पड़ता है कि निकलता है कि किसी खास समयमें कोई वे भी सन्तानक्रमसे सदासे ही चले आते हैं, किसी वस्तुमें कोई खास गुण पैदा नहीं कर और किसी समयमें एकाएक पैदा होने शुरू नहीं सकता है, बल्कि जबसे वह वस्तु है तभीसे हो गये हैं। इस तरह इन पशु, पक्षी, वनस्पति उसमें उसके गुण भी हैं। और चूंकि संसारकी और मनुष्योंका अपने माँ बाप या बीज आदिके वस्तुएँ अनादि हैं इस वास्ते उनके गुण भी द्वारा अनादि कालसे पैदा होता हुआ चला आना अनादि ही हैं-उनको किसीने नहीं बनाया है । मानकर इन सबकी उत्पत्ति और निवासस्थानके इसी प्रकार संसारकी वस्तुओंकी जाँच करनेसें, वास्ते इस धरतीका भी अनादि कालसे ही मौजूद यह भी मालूम हो जाता है कि दो या अधिक. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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