Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 06 07 Author(s): Nathuram Premi Publisher: Jain Granthratna Karyalay View full book textPage 5
________________ ३२३ हैं और बहुत ऐसे हैं जो ४०-४५ वर्षके होने पर भी अपनेको जवान समझते हैं। जो तीस पैंतीस वर्षकी अवस्थामें बूढा बनना चाहता है वह या तो बूढा बनकर अपनी विज्ञता प्रकट करना चाहता है और या चिररोगी अथवा किसी बड़े दुःखसे दबा हुआ है। ऐसे ही जो ४०-४५ वर्षकी अवस्थामें अपनेको जवान बतलाना चाहता है उसको या तो यमराजका भारी भय है और या उसने तिबारा किसी षोडशीसे व्याह किया है। -- किन्तु, जीवनकी इस आधी मंजिलपर पहुँचकर चश्मा हाथमें ले, रूमालसे मत्थेका पसीना पोंछते पोंछते ठीक ठीक बतलाना कठिन है कि "मैं बूढ़ा हुआ या नहीं।" शायद हो गया । अथवा अभी नहीं हुआ। मन कहता है कि आँखोंसे भले ही साफ़ न देख पडता हो, बाल भले ही एक आध पक गये हों, लेकिन अभी बूढ़ा नहीं हुआ । क्यों ? कुछ भी तो पुराना नहीं हुआ । यह पुराना-बहुत पुराना जगत् तो आज भी नवीन ही है ! प्यारी कोयलका कुहूकुहू शब्द पुराना नहीं हुआ, गंगाकी ये सुन्दर चंचल चमकीली लहरें पुरानी नहीं हुई, प्रभात कालकी शीतल मन्द सुगन्ध हवा-बकुल कामिनी चम्पा चमेली जूहीकी सुगंध-वृक्षोंकी श्यामल शोभा-चन्द्रमाकी विमल चाँदनीकुछ भी पुराना नहीं हुआ। सब वैसा ही उज्ज्वल, कोमल, सुन्दर है। केवल मैं ही पुराना होगया ? मैं इस बातको नहीं मानता । पृथ्वी पर तो इस समय भी वैसे ही हँसीका फुहारा छूट रहा है । केवल मेरे ही हँसनेके दिन चले गए ? पृथ्वीपर उत्साह, क्रीडाकेलि, रंगतमाशा आज भी वैसे ही भरा पड़ा है। केवल मेरे ही लिये नहीं है ? जगत् प्रकाशपूर्ण है। केवल मेरे. ही लिये अन्धकारमयी अमाकी निशा आगई ? सालोमन कम्पनीकी दुकानपर वज्रपात हो, मैं यह चश्मा तोड़ डालूंगा । मैं बूढा नहीं हुआ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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