Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 06 07 Author(s): Nathuram Premi Publisher: Jain Granthratna Karyalay View full book textPage 4
________________ पर अभी मैंने पैर नहीं रक्खा । कमसे कम मुझे यह पूर्ण विश्वास है कि वह दिन अभी दूर है । किन्तु जवानी पर भी अब मेरा कुछ दावा नहीं है, मियादी पट्टेकी मियाद पूरी हो गई। यद्यपि मियाद पूरी हो गई है, लेकिन बकाया वसूल करना बाकी है। उसके लिये अभी कुछ झगड़ा बना हुआ है। अभी मैं जवानीसे पूरी तौर पर फारखती नहीं ले सका । इसके सिवा महाजनका भी कुछ बाकी है; अकालके दिनोंमें बहुत कर्जा लेकर खाया है। अब उस ऋणको चुका सकनेकी न आशा है और न शक्ति ही है। उस पर, पार पहुँचानेवालेको उतराई देनेके लिये कुछ जमा करनेकी जरूरत है। मैं अगर अपने इस दुःखचिन्तापूर्ण समयकी दो चार बातें कहूँ, तो क्या तुम जवानीका सुख छोड़कर एक बार सुनोगे ? पहले असल बातका निर्णय हो जाना चाहिये । अच्छा, क्या मैं बूढा हूँ ? मैंने यह प्रश्न केवल अपने ही लिये नहीं उठाया । मैं, बूढा हूँ या जवान हूँ, दोनोंमेंसे एक बात स्वीकार करनेके लिये तैयार हूँ। किन्तु जिसकी अवस्था ऐसी ही खींचतान की है, जिसकी जवानीका सूर्य ढल चुका है, ऐसे हर एक आदमीसे मैं यही कहता हूँ कि वि चार कर देखिये, क्या आप बूढ़े हैं ? , आप, या तो, बाल भौंरेके ऐसे काले धुंघराले–दाँत मोतीकी लंडीको भी लजानेवाले, और नींद तिबारा ब्याहकर लाई हुई जोरूके जगाने पर ( भी ) न खुलनेवाली होनेपर भी, बूढ़े हैं। या, बाल गंगाजमुनी, दांतोंकी लड़ी बीच बीचके एक दो दानोंसे शून्य, और नींद आँखोंके लिये बिडम्बना मात्र होने पर भी, जवान हैं । आप कहेंगे, इसके क्या माने ? मैं कहता हूँ, इसके माने यही हैं कि बहुत लोग ऐसे हैं जो ३०-३५ वर्ष की अवस्थामें ही अपनेको बूढ़ा मान लेते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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