Book Title: Jain Ganitanuyog Author(s): Vijayshree Sadhvi Publisher: Vijayshree Sadhvi View full book textPage 9
________________ जय सीमन्धर श्रमण संघ जयवंत हो जय महावीर / / जय आत्म || || जय आनन्द / / || जय देवेन्द्र / / || जय ज्ञान / / || जय शिव / / आचार्य मंगल संदेश शिवमुनि जैनधर्म वीतराग धर्म है / वीतराग धर्म में प्रतिपादन का विषय है आत्मा / आत्मा और अनात्मा का ही संसार है। जीव कर्माधीन चार गति चौरासी लाख जीव योनि में अनादिकाल से भ्रमण कर रहा है। जैन आगमों में भूगोल, खगोल एवं अंतरिक्ष सम्बन्धी जितने भी पाठ मिलते हैं, प्राय: उनका संकलन गणितानुयोग में किया गया है / उपाध्याय श्री कन्हैयालाल जी महाराज ने गणितानुयोग पर अथक पुरुषार्थ कर शोध पूर्ण कार्य किया है, उसी आधार पर महासाध्वी श्री विजयश्रीजी ने हिन्दी भाषा में सचित्र प्रकाशन करवाने का पुरुषार्थ किया है। महासाध्वी डॉ. विजयश्री जी 'आर्या' आत्मार्थी साध्वीरत्ना है। आत्मा की साधना में भी आपका पुरुषार्थ है, साथ ही स्वाध्याय के क्षेत्र में आप चारों अनुयोगों पर जो पुरुषाथष कर रहे हैं, वह अनुमोदनीय है। आपके द्वारा लिखित ग्रंथ जन-जन को स्वाध्याय की ओर आकर्षित करें। उनमें सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन, सत्य-दर्शन, आत्म-दर्शन को उपलब्ध होने की प्यास जगे। वे आत्मा से परमात्मा बनें। सहमंगल मैत्री, शवमुनि आचार्य शिवमुनि दिनांक : 12 सबका मंगल हो स्थान : शिवाचार्यसमवसरण, रामा विहार, दिल्ली-81Page Navigation
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