Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 7
________________ 6 होगा तथा जनोपयोगी साहित्य का विभिन्न भाषाओं में निर्माण भी । संस्कृत और प्राकृत पढ़ने की सुविधा प्राप्त होगी । इस संस्थान के पास हजारों की सुख्या में प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थ तथा अन्य प्रकाशित सामग्री है । यह विशाल ग्रंथ भण्डार देश-विदेश से आने वाले गवेषकों तथा विद्यार्थियों के लिए एक विशेष आकर्षण बनेगा । एक छोटा सा परन्तु सुन्दर संग्रहालय भी स्थापित किया जाएगा। ताकि आगन्तुक, युवा पीढ़ी तथा पर्यटक एक ही स्थान पर जैन साहित्य, संस्कृति एवम् परम्परा, निर्माणकला तथा ललितकला का दिग्दर्शन कर सकें । श्रमण तथा श्रमणी मण्डल के लिए साहित्य अभ्यास की समुचित व्यवस्था यहां की जायेगी । भारतीय एवम् प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति पर खोज होगी । आत्मार्थियों के लिए साधना एवम् ध्यान केन्द्र बनेगा | भवन की भव्यता, कला तथा फूल फुलवारियों से सुसज्जित इस स्थान की रमणीयता युवा पीढ़ी के लिए विशेष रोचक सिद्ध होगी। विदेशों में रहने वाले जैनों का सम्पर्क केन्द्र बनेगा । भ्रमण के लिए आने वाले भी सुंसस्कार ही लेकर वापिस लौटेंगे । गवेषकों तथा दर्शकों के निवास एवम् भोजनादि की सुन्दर व्यवस्था होगी । ही वे लक्ष्य हैं जिनकी पूर्ति के लिए समाज के कार्यकर्ता आज कार्यरत हैं और शीघ्र ही यह स्थान लोक प्रिय बन जाएगा। यह संस्थान भारतवर्ष की राजधानी दिल्ली से सत्य- -अहिंसा, अनेकान्तवाद तथा अपरिग्रह के अग्रदूत श्रमण भगवान महावीर की यश पताका को विश्व में ऊँचा फहराने का माध्यम बनेगा । . सेठ आनन्दजी कल्याण जी पेढ़ी के निष्णात शिल्प शास्त्री श्री अमृतलाल मूल शंकर द्विवेदी ने पलान बनाए और दिल्ली विकास प्राधिकरण, अर्बन आर्टस कमीशन तथा दिल्ली कार्पोरेशन से मंजूरी लेकर निर्माण कार्य का श्रीगणेश हुआ । 27 जुलाई 1979 को भूमिपूजन तथा 29 नवम्बर 1979 को अखिल भारत श्व ेताम्बर जैन कांफ्रेस के 24वें अधिवेशन के समय हजारों की संख्या में उपस्थित जन समूह के बीच मुख्य भवन का शिलान्यास तथा 21-4-1980 को इसके अन्तर्गत निर्माणाधीन वासुपूज्य भगवान के मन्दिर का शिलारोपण पूज्या महत्तरा साध्वी मृगावती जी के सानिध्य में सम्पन्न हुए हैं । मन्दिर निर्माण तथा प्रबन्ध के लिए एक पृथक ट्रस्ट की स्थापना की गई है। निर्माणाधीन संस्कृति केन्द्र 4 भागों में विभाजित हैं । 1- मुख्य स्मारक भवन तथा बेसमैंट, 2. अतिथिकक्ष तथा बेसमैंट, 3. वासुपूज्य भगवान का मन्दिर, 4. लैण्ड स्केपिंग, कुल निर्माण कार्य 30 हजार वर्ग फुट होगा । जिससे 15 हजार वर्ग फुट का भूतल (बेसमैंट ) होगा और इतना ही भाग ऊपर बनेगा। मुख्य स्मारक भवन, भगवान वासुपूज्य का कलात्मक मन्दिर तथा एक अतिथि कक्ष इस समय निर्माणधीन हैं । भवन के चारों तरफ भूखंड में वृक्ष, फुलवारियाँ, जलाशय तथा पार्क सुसज्जित होंगे। भवन की तलपीठ राष्ट्रीय मार्ग से 15 फुट ऊंची होगी । यह कलात्मक भवन हरित पदी पर दर से ऐसा दिखाई देगा जैसे किसी ऊंचे प्लेटफार्म पर एक सुन्दर For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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