Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 6
________________ श्री आत्म वल्लभ जैन स्मारक शिक्षण निधि ने नानाविध यह उत्तरदायित्व अपने कंधों पर लिया है। आज सकल जैन समाज की आशाएँ इससे बन्ध गई हैं। इसके अन्तर्गत दिल्ली महानगर में एक भव्य कलात्मक विशाल भवन का निर्माण हो रहा है। दिल्ली से पंजाब की ओर जाने वाले राष्ट्रीय मार्ग नं0 1 पर 22वें किलोमीटर पर यह स्थान स्थित है। 19 एकड़ का यह भूखंड हरे-भरे लहलहाते खेतों एवं खलिहानों के मध्य आबादी से तनिक दूर उभर रहा है। __ अज्ञान तिमिर तरणी, कलिकाल कल्पतरू, युगवीर, जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरि जी महाराज इस शताब्दी के एक विशिष्ट प्रतिभाशाली एवं क्रान्तिकारी धर्म-गुरु तथा समाज सुधारक हुए हैं । श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज ने जैन समाज को कुम्भकरणी निद्रा से जगाया तथा मानव समाज को एकता, सहिष्णुता और धर्म का उपदेश दिया तथा ज्ञानरूपी सूर्य की किरणों से पुलकित किया। धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ व्यवहारिक शिक्षा, स्त्री शिक्षा, समाज संगठन तथा मध्यम वर्ग उत्थान के वे मसीहा थे। सरस्वती मन्दिरों का निर्माण कर उन्होंने समाज को नया जीवन प्रदान किया । आज से 70 वर्ष पूर्व महावीर जैन विद्यालय बम्बई जैसी सुमुन्नत संस्था के वे आद्य प्रेरक बने । श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल (पंजाब) गुजरांवाला, श्री आत्मानन्द जैन कालेज अम्बाला तथा अनेक स्कूल, पाठशालाएँ एवं छात्रालय विभिन्न स्थानों पर खुलवा कर उन्होंने समाज का उद्धार किया। शिक्षा के क्षेत्र में यदि मेरा समाज पिछड़ गया तो प्रगति की दौड़ में पीछे रह जाएगा' यही उनके मन में तड़प थी। समाज उनका सदैव ऋणी रहेगा। जब सन् 1954 में श्रीमद् विजय वक्ष्लभ सूरिजी महाराज का बम्बई में देवलोक गमन हआ तो उस समय एकत्रित अखिल भारतवर्षीय समाज ने निर्णय लिया कि ऐसी महान विभूति की पुण्य स्मृति में एक विविधलक्षी संस्थान भारत की राजधानी दिल्ली में बनाना चाहिए। भगवान महावीर के 2500वें निर्वाण वर्ष में यह योजना तैयार हुई। उन्हीं के पट्ट प्रभावक जिन शासन रत्न विजय समुद्र सूरि जी की आज्ञा से जैन भारती महत्तरा साध्वी श्री मृगावती जी ने यह कार्य सम्भाला। साध्वी जी की कठिन तपस्या तथा अनथक प्रयासों से यह कार्य प्रारम्भ हुआ। वर्तमान आचार्य श्री विजय इन्द्रदिन्न सूरि जी महाराज ने इस योजना को शीघ्रातिशीघ्र कार्यन्वित करने के लिए अपना आर्शीवाद प्रदान किया है । नूतन आचार्य जनक चन्द्र सूरि भी इस प्रयास में शामिल हैं। गुरुदेव विजय वल्लभ सूरि जी को शिक्षा अति प्रिय थी। अतः अखिल भारतीय स्तर पर एक शैक्षणिक ट्रस्ट की स्थापना की गई। मद्रास, बंगलौर, बम्बई, अहमदाबाद, राजस्थान, दिल्ली तथा पंजाब से ट्रस्टियों का चयन किया गया है। विदेश (इंगलैंड) से भी भारतीय मूल के एक प्रवासी डाक्टर को ट्रस्टी चुनकर इस संस्था को अन्तर्राष्ट्रीय रूप दिया गया है। स्वर्गीय सेठ कस्तूरभाई लालभाई ने इस संस्था का मार्ग दर्शन किया तथा वे इसके आद्य-संरक्षक बने । योजना विविधलक्षी है। सातों क्षेत्रों का सिंचन होगा। इस केन्द्र का नाम 'श्री आत्म वल्लभ संस्कृति मन्दिर' रखा गया है । इसके अन्तर्गत साहित्य पर शोध कार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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