Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 08 Author(s): Atmaramji Maharaj Publisher: View full book textPage 4
________________ EXICORAKAAREERRAATXXEKXcom BRARIERTAINMEIGARLXXKARMINAME-MA-- धार्मिक शिक्षाप्रो द्वारा आत्मा से पृथक् करने की चेष्टा करते रहना यही धार्मिक शिक्षाओं का मुख्योद्देश्य है / अतः सर्व धर्मों में सम्यग् दर्शन ज्ञान चारित्र प्रधान श्री जैन धर्म की धार्मिक शिक्षाएँ परम प्रधान हैं। मेरे हृदय में चिरकाल से ये विचार उत्पन्न हो रहे थे कि एक इस प्रकार की शिक्षावली के भाग तय्यार किये जावें, जिनके पढ़ने से प्रत्येक विद्यार्थियों को जैनधर्म की धार्मिक शिक्षाओं का सौभाग्य उपलब्ध हो सके / तब मैंने स्वकीय विचार श्री श्री श्री 1008 स्वर्गीय श्री गणावच्छेदक वा स्थविरपदविभूषित श्री गणपतिराय जी महाराज के चरणों में निवेदन किये तव श्री महाराज जी ने मुझे इस काम को प्रारम्भ कर देने कि आज्ञा प्रदान की तब मैंने श्री महाराज जी की आज्ञा शिरोधारण करके इस काम को आरम्भ किया / हर्प का विषय है कि इस शिक्षावली के सात भाग निकल गये और कई भाग तो छठी श्रावृत्ति तक भी पहुंच चुके हैं जैन जनता ने इन भागों को अच्छी तरह अपनाया है। अब इस शिक्षावली का अष्टम भाग जनता के सामने श्रा रहा है इस भाग में उन उपयोगी विषयों का संग्रह किया गया / है जिस से अष्टम श्रेणी के बालक वा वालिकाएँ भली प्रकार से STREXTERTA ITRAM FIGRAPARXAXXXEXEXXEDDREDEXEEEXAPage Navigation
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