Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 08
Author(s): Atmaramji Maharaj
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Page 2
________________ मुख्य वक्तव्य RAIEEEXXXCODXXKOT CM. -.01 . . SEXRANKEDAREKARATAHARASHRA प्रिय पाठको आत्मा को ससार चक्र में परिभ्रमण करते हुए शुभाशुभ कर्मों के प्रयोग से प्रत्येक पदार्थों की प्राप्ति हुई और भविष्यत् काल में यदि मोक्ष पद उपलब्ध न हुआ तो अवश्यमेव होगा / अतः धर्म प्राप्ति का होना असम्भव नहीं है तो कठिनतर तो अवश्यमेव है। कारण कि धर्म प्राप्ति कर्मक्षय वा क्षयोपशम भाव के कारण से ही उपलब्ध हो सकती है। धर्म प्रचार से भी बहुत मे सुलभ आत्माओं को धर्मप्राप्ति हो सकती है इसलिये धार्मिक पाठशालाओं की अत्यन्त आवश्यकता है, जिससे प्रत्येक बालक और वालिकाओं के पवित्र और सकोमल हृदयों पर धार्मिक शिक्षाएँ अकित हो जाएँ। यद्यपि भारतवर्ष में मासारिक उन्नति के लिये अनेक राजकीय पाठशालाएँ वा विश्वविद्यालय विद्यमान हैं और उनमें प्रतिवर्ष सैकड़ों विद्यार्थी उत्तीर्ण होकर निकलते हैं तथापि धार्मिक शिक्षाओं के न होने से उन अविद्यार्थियों का चरित्र सगठन सम्यगतया नहीं देखा जाता इसका मुख्य कारण यही है कि वे विद्यार्थी प्रायः धार्मिक शिक्षा से वचित होते हैं / अतः उन ETERAEXEEXIMALKERAISATIRAKXCREAKER pm - mir - - - --

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