Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 03
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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साहित्य प्रकाशन फण्ड
श्री सम्यक सार्थक अरुण जैन, दिल्ली हस्ते. उम्मेदभाई श्री परागभाई हरिवदन सत्यपंथी, अहमदाबाद
श्रीमती पुष्पाबेन मनसुख शाह, लन्दन श्री एन. एस. चौधरी, भिलाई
ब्र. कुसुम जैन पाटिल, कुम्भोज बाहुबली
श्री खेमराज प्रेमचन्द जैन, हस्ते - श्री अभयकुमार, खैरागढ़ झनकारीबाई खेमराज बाफना चेरिटेबल ट्रस्ट, खैरागढ़ श्रीमती ममता - रमेशचन्द जैन शास्त्री, जयपुर श्रीमती मनोरमादेवी विनोदकुमार जैन, जयपुर श्री दुलीचन्द कमलेश जैन ह. जिनेश जैन, खैरागढ़ श्रीमती ढेलाबाई, ह. श्री मोतीलाल जैन, खैरागढ़ स्व. वसन्तबेन मनहरलाल कोठारी, बम्बई
श्री घेवरचन्द राजेन्द्रकुमार ढाकलिया, राजनांदगाँव ब्र. ताराबेन मैनाबेन, सोनगढ़
श्री फूलचन्द चौधरी,
बम्बई
श्री पन्नालाल मनोजकुमार गिड़िया, खैरागढ़
श्रीमती सुषमा जिनेन्द्रकुमार जैन, खैरागढ़
श्री जयन्तिभाई डी. दोशी, दादर
श्रीमती सरला जैन हस्ते निधि - निश्चल, खैरागढ़
श्री निलेश शामजी शाह, गोरेगाँव
श्री विपुल शामजी शाह, गोरेगाँव
श्रद्धा पूजा सतीश शाह, मलाड श्री ऋषभ - रुचि - चन्द्रकान्त कामदार, राजकोट
अनुभूति-विभूति अतुल जैन, मलाड
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सब विपत्तियों का मूल अज्ञान है।
पढ़ा-लिखा अज्ञानी, अनपढ़ अज्ञानी से अधिक भयंकर होता है । अज्ञान का आभास होना ही अज्ञान के नाश की विधि है । स्वभाव में रहे वह सुखी, संयोग में सुख खोजे वह दु:खी । रत्नत्रय है मेरा धन, धन बिन जग सारा निर्धन ।