Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 03
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
View full book text
________________
जैनधर्म की कहानियाँ भाग-३/१३ यह बंदर हुआ है; परन्तु अब इसे उत्कृष्ट भाव जागा है, इसे धर्म के प्रति प्रेम उत्पन्न हुआ है। धर्म उपदेश सुनने से यह बंदर बहुत खुश हुआ है, उसे पूर्वभव का स्मरण हुआ है और संसार से उदास हो गया है।"
मुनिराज के मुख से बंदर का वृत्तांत सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुए। - फिर मुनिराज ने कहा – हे राजन् ! जिस प्रकार इस भव में हम तुम्हारे पुत्र थे, उसी प्रकार यह बंदर भविष्य में तुम्हारा पुत्र होगा। जब तुम ऋषभदेव तीर्थंकर होगे, तब यह जीव तुम्हारा गणधर होगा और फिर मोक्ष प्राप्त करेगा।
_ अहा, मुनिराज के मुख से यह बात सुनकर बंदर भाई तो बहुत ही खुश हुआ और भावविभोर होकर मुनि के चरणों की वन्दना करके आनंद से नाचने लगा।