Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 03
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-३/१८ तब भगवान की वाणी में आया “ये तुम्हारी राजगृही नगरी के नागदत्त सेठ का जीव है, वह सेठ मरकर मेंढ़क हुआ। उसे अपना पूर्वभव याद आया और वह तुम्हारे साथ मुँह में फूल लेकर दर्शन करने के लिए आ रहा था, इसी बीच वह तुम्हारे हाथी के पैर के नीचे दबकर मर गया और मरकर देव हुआ। वहाँ अविधज्ञान से उसे याद आया कि भगवान के दर्शन-पूजन की भावना के प्रताप से मैं मेंढ़क से देव हुआ हूँ, इसलिए वह यहाँ आकर तुम्हारे ही साथ दर्शन-पूजन कर रहा है।
भगवान के श्रीमुख से यह बात सुनकर उस देव को बहुत हर्ष हुआ और भगवान के उपदेश को सुनकर उसने भी सम्यग्दर्शन प्राप्त किया।
प्रिय पाठको ! तुम भी मेंढ़क के समान भगवान की भक्ति-पूजा करके अपनी आत्मा को समझ लो और स्वर्ग-मोक्ष को पाओ।
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("हे तीर्थपति ! तुम्हारे वंदन-ध्यान से मेंढ़क भी देव हो जाते हैं।)
जीवों ने अज्ञान से राग की भावना भाई है, परन्तु रत्नत्रय धर्म की भावना कभी नहीं भाई। भावना का अर्थ है परिणमन; राग में तन्मय होकर परिणमा परन्तु राग से भिन्न सम्यग्दर्शनादिरूप परिणमन नहीं किया, इस कारण जीव संसार में रुल रहा है।- छहढाला प्रवचन भाग-१, पृष्ठ ४५