Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 03
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 18
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-३/१६ राजा हाथी के ऊपर बैठकर भगवान के दर्शन के लिए निकले। बाजा बजाने वाले ने ढोल बजाया। राजा के साथ हजारों नगरजन दर्शन करने के लिए जा रहे थे। यह सब देखकर एक मेंढ़क के मन में भी ऐसा भाव आया कि मैं भी भगवान के दर्शन करने के लिए जाऊँ, इसलिए मुँह में एक फूल लेकर वह भगवान के दर्शन करने के लिए चला। भक्तिभाव से वह दौड़ता हुआ जा रहा था - मेंढ़क मेंढ़क दौड़ा जाये, मुँह में फूल लेकर जाये। वीर प्रभु के दर्शन को जाये, जिसे देखकर आनंद होते। डग....डग....डबक.... / टब....टब....टबक। मेंढ़क भाई तो चले जा रहे थे, उसके हृदय में असीम आनंद उमड़ रहा था। पीछे से राजा श्रेणिक का हाथी भी चला आ रहा था। राजा हाथी पर बैठकर जा रहे थे और मेंढ़क भाई कूदता-कूदता जा रहा था....दोनों को भगवान के दर्शन की भावना थी, दोनों को भगवान के प्रति अपार श्रद्धा-भक्ति थी। खुशी-खुशी मेंढ़क छलाँग मारते हुए जा रहा था। टब.... टब...टबक... डग... डग....डबक....। उसको आस-पास का कोई भान नहीं था। एक ही धुन थी कि वीर प्रभु का दर्शन करूँ इतने में राजा के हाथी का पैर उसके ऊपर पड़

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