Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 03
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-३/५४
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कदंबवन के पास आतापन योग धारण किया । अरे ! जो-जो देखी वीतराग ने सो-सो होसी वीरा रे.... ।
भवितव्य के योग से बराबर उसी समय अनेक यादवकुमार वनक्रीड़ा करने के लिए आये थे । वे थक गये थे और उन्हें बहुत प्यास लगी थी, जिससे उन्होंने कदंबवन के कुण्ड में से पानी निकाल कर पी लिया । पहले यादवों ने जो मदिरा नगर के बाहर फेंक दी थी, वह पानी के साथ होती हुई इस कुंड में जमा हो गई थी तथा उसमें बहुत से फल गिरे थे, सूर्य
गर्मी के कारण सारा पानी मदिरा के समान ही हो गया था । प्यास से यादवकुमारों ने वह पानी पिया और बस, कदंबवन की उस कादंबरी (मदिरा) को पीने से उन यादव कुमारों को नशा चढ़ा, वे उन्मत होकर कुछ भी उल्टा-सीधा बकने लगे और ऊटपटांग नाचने लगे। इसी समय उन्होंने द्वीपायन को देखा। देखते ही कहा
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"अरे ! यह तो द्वीपायन है, इसके द्वारा ही तो द्वारिका नगरी का नाश होना था, तब तो ये यहाँ से भाग गया था, परन्तु अब वह हमसे बचकर कहाँ जायेगा ? - ऐसा कहकर वे कुमार निर्दयतापूर्वक उन तापसी के ऊपर पत्थर मारने लगे ।"
उन्होंने उन्हें इतना मारा कि वे तापसी जमीन पर गिर पड़े। उस समय उन द्वीपायन मुनि को बहुत क्रोध आया । अरे, होनहार ! क्रोध से होंठ भींचकर उन्होंने आँखें चढ़ाई और यादवों के नाश के लिए कटिबद्ध हुए। यादव कुमार भय के कारण दौड़ने लगे। दौड़ते-दौड़ते द्वारिका नगरी में आये और पूरी नगरी में हलचल मच गयी।
बलदेव और श्रीकृष्ण यह बात सुनते ही मुनि को शान्त करने के . लिए दौड़े। जिनके सामने नजर मिलाना भी मुश्किल था तथा जिन्होंने सारी द्वारिका के प्राण मानो कण्ठगत किये हों, ऐसे क्रोधाग्नि से प्रज्ज्वलित भयंकर द्वीपायन ऋषि के प्रति भी श्रीकृष्ण - बलदेव ने हाथ जोड़कर नमस्कार करके नगरी का अभयदान माँगा