Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 03
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-३/१९ कहाँ है मेश चिदानंद प्रभु ?
एक मुमुक्षु आत्मा को खोज रहा था, ज्ञानी महात्मा ने उसे समझाने के लिए दृष्टान्त दिया
एक मनुष्य था, वह बैल के समान स्वाँग धारण करके पूछता है“मैं मनुष्य किस प्रकार होऊँगा ?"
“भाई ! तू मनुष्य ही है, तू बैल नहीं। तू अपनी भाषा, अपनी . चेष्टा, अपना रूप, अपना खान-पान आदि से देख कि तू मनुष्य ही है।"
उसीप्रकार उपयोगस्वरूप जीव पूछता है – “मैं उपयोगस्वरूप किस प्रकार होऊँगा ?"
___ "हे आत्मा ! तुम उपयोगस्वरूप ही हो, अन्य रूप नहीं। अपने प्रश्न करने की योग्यता से और अपनी जानने की चेष्टा से तू देख कि तू उपयोगस्वरूप ही है। विपरीत स्वाँग अर्थात् रागादि करना छोड़ दे तो स्वयमेव उपयोगस्वरूप हो जावेगा। अपने उपयोग को बाहर में मत खोज, अंतर में ही देख।"
उपयोगस्वरूप आत्मा प्रभु चिदानंद राजा को किस प्रकार प्राप्त करना चाहिये ?
प्रथम तो सर्व लौकिक संग से परांगमुख हो जा....और अपने विचार को चैतन्य राजा के सन्मुख कर....तीन प्रकार की कर्म-कंदरा रूप गुफाओं में तुम्हारा चैतन्य प्रभु छिपा बैठा है। शरीरादि नोकर्म, आठ द्रव्यकर्म और राग-द्वेष आदि भावकर्म - इन तीन गुफाओं को छोड़कर अंदर जाते ही तुम्हारा प्रभु तुम्हें अपने में दिखेगा....अर्थात् तू अपने को ही प्रभुरूप अनुभव करेगा।
संतों की यह बात सुनकर परिणति अपने प्रभु को खोजने के लिए खुशी एवं उत्साह से चली -