Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 03
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-३/२३ भाव परिवर्तन की कला (रौद्र रस से क्षणमात्र में शांत रस) (जैन साहित्य में प्रसिद्ध दो कलाकारों की कहानियाँ अनेक प्रकार से सद्बोध देनेवाली हैं। अपने भावों का स्वतंत्र रूप से परिणमन करनेवाला जीव, हिंसा से अहिंसा, क्रोध से क्षमा, रौद्र रस से शांत रस या संसार से मुक्ति का महान परिवर्तन एक क्षणमात्र में करने की सामर्थ्य रखता है। उन भाव परिवर्तन करने वालों की ही ये कहानियाँ हैं। पहली कहानी है - बहुरूपी ब्रह्मगुलाल की - जिसने सिंह का स्वाँग करने के बाद साधु का स्वाँग धारण करके निज कल्याण किया। दूसरी कहानी है - सोनी कलाकार अंगारक की - जिसने अंगारे के समान क्रोध से पलटकर रत्नत्रय रूपी रत्नों के द्वारा आत्मा को अलंकृत किया। दोनों कहानियों से हम सभी को अपने भाव परिवर्तन की सुन्दर कला सीखनी चाहिये।) १. महान भावपरिवर्तक बहुरूपी ब्रह्मगुलाल - प्रिय दर्शको ! केवल एक स्वाँग देखकर घबरा मत जाना। क्षणमात्र में वह स्वाँग बदलकर दूसरा सुन्दर स्वाँग हो सकता है। सिंह के रौद्र रूप के बाद जिसने मुनिदशा का शांत रस रूप सुन्दर स्वाँग धारण किया और इसप्रकार संसार का स्वाँग-छोड़कर मोक्ष-साधना का सुन्दर स्वाँग धारण किया। इस नाटक में एक जीव के दो स्वाँग बताये गये हैं। एक था राजकुमार.... उसका एक मित्र कलाकार बहुरूपी था। विविध स्वाँग धारण करने में वह बहुत कुशल था। उसका नाम था ब्रह्मगुलाल। एक बार राजकुमार के सामने विवाद उपस्थित हुआ, क्योंकि वह राजकुमार “ब्रह्मगुलाल" कलाकार की बहुत प्रशंसा करता था, परन्तु उसकी मित्र मण्डली को यह बात अच्छी नहीं लगती थी। मित्र कहते कि

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84