Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 03
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

View full book text
Previous | Next

Page 39
________________ २. कलाकार अंगारक की कथा (जिसने अपनी आत्मा रूपी आभूषण में सम्यक् रत्नों को जड़कर सच्ची कला प्रकट की, ज्ञानकला प्रकट की- ऐसे महान कलाकार की कथा ।) जैनधर्म की कहानियाँ भाग-३/३७ कौशाम्बी नगरी में प्रसिद्ध एक कलाकार था, उसका नाम अंगारक था, वह अत्यन्त कुशल कलाकार था, साथ ही साथ वह धर्म का प्रेमी और उदार भी था। कला के साथ इन दो गुणों के कारण उसकी प्रतिष्ठा में चार चाँद लग गये थे । उसका मुख्यत: कार्य आभूषणों में कीमती हीरेमाणिक मोती जड़ना था और अपने इस कार्य में वह अत्यधिक दक्ष था । कीमती रत्नों से तो वह अपने जीवन को अनेक बार अलंकृत कर चुका था, परन्तु रत्नत्रय रूपी रत्नों से अपने आत्मा को अभी तक अलंकृत नहीं कर सका था । - आज कलाकार का निवास स्थान पद्मरागमणि की रक्तप्रभा (लाल किरणों) से जगमग जगमग हो रहा था । उस पद्ममणि के सामने नजर जमाकर वह विचार कर रहा था । - 66 " इस कीमती मणि को आभूषण में किस प्रकार जड़ना, क्योंकि यह कोई साधारण रत्न नहीं है । यह तो कौशाम्बी के महाराज गंधर्वसेन के आभूषण में जड़ने के लिए आया महामूल्यवान पद्मरागमणि है। मेरी कला पर विश्वास करके महाराज ने यह काम मुझे सौंपा है। अतः आभूषण में वह इस प्रकार जड़ा जाये कि उसकी शोभा एकदम खिल उठे । " - इस विचार से कलाकार उस पद्ममणि को क्षण में आभूषण के इस तरफ, क्षण में उस तरफ और क्षण में बीच में जोड़कर देखता - इस प्रकार घुमाते - घुमाते बहुत परिश्रम के बाद जब उसके मनपसंद स्थान पर वह मणि शोभित हो गया, तब उसकी शोभा देखकर उसका मन हर्ष से गद्गद् हो गया

Loading...

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84