Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 03
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 53
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-३/५१ के द्वारा इस नगरी को भस्म करेंगे तथा महाभाग्यवान श्रीकृष्ण जब कौशाम्बी के वन में सो रहे होंगे, तब उसी समय उनके ही भाई जरतकुमार के बाण से परलोक सिधारेंगे। उसके छह माह पश्चात् सिद्धार्थ देव के संबोधन से तुम (बलभद्र) संसार से विरक्त होकर संयमदशा को धारण करोगे। जन्म-मरण के दुख का कारण तो राग-द्वेष का भाव है और जिस समय पुण्य का प्रताप क्षय को प्राप्त होता है, उसी समय बाहर में कोई न कोई निमित्त मिल जाता है। वस्तु स्वभाव को जाननेवाले वैरागी जीव पुण्य-प्रसंग में हर्ष नहीं करते और उसके नाश के समय विषाद नहीं करते। वासुदेव के वियोग से तुम (बलभद्र) प्रथम तो बहुत दुखी होगे, लेकिन फिर प्रतिबुद्ध होकर भगवती दीक्षा धारण कर पाँचवें ब्रह्मस्वर्ग में जाओगे। वहाँ से नरभव प्राप्त कर निरंजन सिद्ध होगे, मोक्ष प्राप्त करोगे। श्रीकृष्ण भी भविष्य में मोक्ष प्राप्त करेंगे।" __(बलभद्र और श्रीकृष्ण दोनों ही जीव तीर्थंकर होगे - ऐसा उत्तरपुराण में कहा है।) __ प्रभु की यह बात सुनकर द्वीपायन तो तुरंत दीक्षा धारण करके द्वारिका से दूर-सुदूर विहार कर गये। द्वीपायन मुनि ने सोचा कि विहार करने से, मेरे निमित्त से होने वाला द्वारिका का विनाश रुक जायेगा। लेकिन अरे रे ! भगवान के ज्ञान में जो भासित हुआ है, उसे कौन बदल सकता है ? इसी प्रकार मेरे बाण से हरि की मृत्यु होगी – ऐसा सुनकर जरतकुमार भी बहुत दुखी हुआ और कुटुम्ब को छोड़कर दूर ऐसे वन में चला गया कि जहाँ हरि के दर्शन भी नहीं हो सके। श्रीकृष्ण से स्नेह के कारण वह जरतकुमार बहुत व्याकुल हो गया। श्रीकृष्ण हरि उसे प्राण से भी अधिक प्रिय थे। वे दूर वन में वनचर की भाँति रहने लगे, जिससे अपने हाथ से हरि की मृत्यु न हो। लेकिन अरे ! प्रभु की वाणी को कौन मिथ्या कर सकता है ?

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