Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 03
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 23
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-३/२१ कहते ? इसलिए इस देह गुफा के अंदर गहराई में तीन गुफाएँ हैं, वहाँ जाकर खोज....वहाँ तुम्हारा प्रभु विराजमान है। वह तुझे जरूर मिलेगा....उससे मिलकर तुझे महा आनंद होगा।" उपकारी श्री गुरु के वचनों पर विश्वास करके धीरे-धीरे वह परिणति चैतन्य प्रभु को खोजने के लिए अंदर चली गयी और दूसरी द्रव्य कर्म गुफा में घुसकर देखा....वहाँ तो ज्ञानावरणादि कर्म दिखाई दिये, परन्तु चैतन्य प्रभु दिखाई नहीं दिया। तब उसने चेतना से पूछा – “कहाँ है मेरा चैतन्य प्रभु ?" __ “हे परिणति सुनो ! इन जड़ कर्मों में जो क्रिया होती है, उसकी डोरी तुम्हारे चैतन्य प्रभु के हाथ में है, उसके हिलाने से वह हिलती है....तुम्हारे चैतन्यप्रभु के भाव अनुसार इन कर्मों में प्रदेश-प्रकृति स्थितिअनुभाग बन्ध होते है। ज्ञानगुण धारक तुम्हारे चैतन्य प्रभु की सत्ता के प्रताप से इन पुद्गलों को ज्ञानावरण आदि नाम प्राप्त हैं। तुम्हारे अंदर यदि चैतन्यप्रभु विराजमान न होता तो इन पुद्गलों को “ज्ञानावरण" आदि नाम कहाँ से मिलते ? इसलिए यह द्रव्यकर्म रूपी डोरी को पकड़कर जल्दी-जल्दी अंदर जा....इस डोरी को मत देख, परन्तु जिसके हाथ में यह डोरी है, उसे देख....अंदर और गहराई में तीसरी गुफा में जाकर खोज....।" चैतन्य प्रभु से मिलने के लिए परिणति तीसरी भावकर्म गुफा में गयी....चैतन्य प्रभु के कुछ-कुछ चिन्ह उसे समझ में आने लगे....इस तीसरी गुफा में राग-द्वेषादि भावकर्म दिखाई दिये....। तब चेतना से पुन: पूछा – “इसमें मेरा चैतन्य प्रभु कहाँ है ?" उस समय श्रीगुरु ने उसे चेतना-प्रकाश और राग-द्वेष के बीच भेदज्ञान कराने के लिए कहा - “जो यह राग-द्वेष दिखाई दे रहे हैं तथा जिसके प्रकाश में दिखाई

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